धरती पर पसरी हरियाली
तन-मन सबका मोह रही है
नभ पर घटा घिरी है काली
मोर-मोरनी ने कानन में
नृत्य दिखाकर खुशी मना ली
सड़कों पर काँवड़ियों की भी
घूम रहीं टोली मतवाली
झूम-झूम लहराते पौधे
धानों पर छायीं हैं बाली
दाड़िम, सेब-नाशपाती के,
चेहरे पर छायी है लाली
लेकिन ऐसे में विरहिन का
उर-मन्दिर है खाली-खाली
प्रजातन्त्र के लोभी भँवरे
उपवन में खा रहे दलाली
कैसे निखरे "रूप" गुलों का
करते हैं मक्कारी माली
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मंगलवार, 18 जुलाई 2017
बालकविता "नभ पर घटा घिरी है काली" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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सरल, सुगम बाल कविता
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंरामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ,आभार। "एकलव्य"
जवाब देंहटाएंधरती पर पसरी हरियाली तन-मन सबका मोह रही ।
जवाब देंहटाएंसच मे सावन की हरियाली प्रकृति का अद्भुत श्रृंगार कर सबका मॉन मोह लेती है ।
waah saras baal rachna man mohak
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