श्रीमती जी का जन्मदिन
"तीस सितम्बर"
जब-जब दर्पण को देखा
है,
उसमें रूप तुम्हारा
पाया।
जीवन के हर दोराहे पर,
तुमको साथ हमेशा
पाया।।
कभी मनाया हमने तुमको,
कभी मनाया तुमने हमको,
स्नेहभरा इक दीप
जलाकर
हटा दिया जीवन के तम
को,
अथक परिश्रम करके
तुमने
निर्धनता को दूर
भगाया।
जीवन के हर दोराहे पर,
तुमको साथ हमेशा
पाया।।
तुम भी तो पहले जैसी
हो,
हम भी तो पहले जैसे
हैं,
पहले थे दोनो थे लोहे
से,
लेकिन अब चांदी जैसे
हैं,
केश पक गये और झर गये,
लेकिन है कंचन सी
काया।
जीवन के हर दोराहे पर,
तुमको साथ हमेशा
पाया।।
जितने सपने देखे हमने,
वो सारे साकार हो गये,
दो से हुए चार बढ़
करके,
अब तो दो भी चार हो
गये,
दादी-दादा बन करके अब,
बचपन लौट हमारा आया।
जीवन के हर दोराहे पर,
तुमको साथ हमेशा
पाया।।
आज तुम्हारे जन्मदिवस
पर,
देता हूँ उपहार सलोना,
जीवन के इस कालचक्र
में,
धीरज कभी न अपना खोना,
अजर-अमर जो कहलाता है,
उसी प्यार को मैं हूँ
लाया।
जीवन के हर दोराहे पर,
तुमको साथ हमेशा
पाया।।
|
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शनिवार, 29 सितंबर 2018
"तीस सितम्बर" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
दोहे "रहा जगत में काम" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
रखना सोच-विचार कर, लोगों से अनुबन्ध।
कच्चे धागे की तरह, होते हैं सम्बन्ध।।
उपनिवेश का आदमी, बन बैठा उपवेश्य।
खाना-पीना-खेलना, अब उसका उद्देश्य।।
दाँव-पेंच में तो नहीं, होता कोई दक्ष।
पारदर्शिता से रखो, न्यायालय में पक्ष।।
पहले जैसा तो नहीं, रहा जगत में काम।
काम-काम में हो रहा, मानव अब बदनाम।।
बदल गयीं है नीतियाँ, बदल गये अब ढंग।
देख मनुज का आचरण, गिरगिट भी है दंग।।
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शुक्रवार, 28 सितंबर 2018
वन्दना के दोहे "पावन हो परिवेश" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
नूतन छन्दों का मुझे, दो अभिनव उपहार।।
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तुक-लय-गति का है नहीं, मुझको कुछ भी ज्ञान।
मेधावी मुझको करो, मैं मूरख नादान।।
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सच्चे मन से आपका, करता हूँ मैं ध्यान।
शब्दों को पहनाइए, माँ निर्मल परिधान।।
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गीत-ग़ज़ल-दोहे लिखूँ, लिखूँ बाल साहित्य।
माता मेरे सृजन में, भर देना लालित्य।।
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लिखने वाली आप हो, मैं हूँ मात्र निमित्त।
पावन करना चित्त को, नहीं चाहिए वित्त।।
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बैठक में अज्ञान की, पसरी हुई जमात।
विद्वानों को हाँकते, अब धनवान बलात।।
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देवी हो माँ ज्ञान की, ऐसे करो उपाय।
साधक वीणापाणि के, कभी न हों असहाय।।
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जगत गुरू बन जाय फिर, अपना प्यारा देश।।
वीणा की झंकार से, पावन हो परिवेश।।
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गुरुवार, 27 सितंबर 2018
गीत "आओ पेड़ लगायें हम" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
जो स्वदेश का मान बढ़ाते,
वो ही दक्ष कहाते हैं। धरा सुसज्जित होती जिनसे, वो ही वृक्ष कहाते हैं। हरित क्रान्ति के संवाहक जो, जन-गण के रखवाले हैं,
आँगन-खेत, बाग-जंगल में,
लहराते मतवाले हैं,
जो प्राणों को देने वाली, मन्द समीर बहाते हैं। धरा सुसज्जित होती जिनसे, वो ही वृक्ष कहाते हैं।। फूल-मूल, फल-पत्ते जिनके, जीवन देने वाले हों,
वसुन्धरा का जो धानी,
शृंगार सजाने वाले हों,
जिनके कहने पर बादल,
नभ से पानी बरसाते हैं।
धरा सुसज्जित होती जिनसे,
वो ही वृक्ष कहाते हैं।। उपवन, आँगन, खेत, बाग में, आओ पेड़ लगायें हम,
जैविक खाद लगाकर,
माटी को उर्वरा बनायें हम,
पेड़ों की शीतल छाया में, जीव-जन्तु सुख पाते हैं। धरा सुसज्जित होती जिनसे, वो ही वृक्ष कहाते हैं।।
करती है फरियाद धरा,
हर रोज जगत के माली से,
हरा-भरा परिवेश बना दो,
कुदरत की हरियाली से,
जो जीवन में कदम-कदम पर,
काम हमारे आते हैं।
धरा सुसज्जित होती जिनसे,
वो ही वृक्ष कहाते हैं।। |
मंगलवार, 25 सितंबर 2018
दोहे "गुरुओं का ज्ञान" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मतलब
के हैं अब गुरू, मतलब के ही शिष्य।
दोनों
इसी जुगाड़ में, कैसे बने भविष्य।।
सम्बन्धों
की आज तो, हालत बड़ी विचित्र।
नहीं
रहे गुरु-शिष्य अब, पावन और पवित्र।।
साथ
बैठ गुरु-शिष्य जब, छलकाते हों जाम।
नवयुग
की इस पौध का, क्या होगा अंजाम।।
बाजारों
में बिक रहा, अब गुरुओं का ज्ञान।
हर
ऊँची दूकान का, फीका है पकवान।।
दौलत
के दरबार में, पैसे के हैं रंग।।
प्रतिभाएँ
कुण्ठित हुई, देख अनोखे ढंग।।
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सोमवार, 24 सितंबर 2018
गीत "नीर पावन बनाओ करो आचमन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
जो घमण्डी हैं उनका ही होता पतन।।
कुछ भी दुर्लभ नहीं आदमी के लिए,
मान-सम्मान है संयमी के लिए,
सींचना नेह से अपना प्यारा चमन।
जो घमण्डी हैं उनका ही होता पतन।।
रास्ते में मिलेंगे बहुत पेंचो-खम,
साथ में आओ मिलकर बढ़ायें कदम,
नीर पावन बनाओ करो आचमन।
जो घमण्डी हैं उनका ही होता पतन।।
पेड़ जो दर्प में थे अकड़ कर खड़े,
एक झोंके में वो धम्म से गिर पड़े,
लोच वालो का होता नही है दमन।
जो घमण्डी हैं उनका ही होता पतन।।
सख्त चट्टान पल में दरकने लगी,
जल की धारा के संग में लुढ़कने लगी,
छोड़ देना पड़ा कंकड़ों को वतन।
जो घमण्डी हैं उनका ही होता पतन।।
घास कोमल है लहरा रही शान से,
सबको देती सलामी बड़े मान से,
आँधी तूफान में भी सलामत है तन।
जो घमण्डी हैं उनका ही होता पतन।।
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दोहे "पितृपक्ष में कीजिए, वन्दन-पूजा-जाप" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
श्रद्धा से ही कीजिए, निज पुरुखों को याद।
श्रद्धा ही तो श्राद्ध की, होती है बुनियाद।।
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आदिकाल से चल रही, जग में जग की रीत।
वर्तमान ही बाद में, होता सदा अतीत।।
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जीवन आता है नहीं, जब जाता है रूठ।
जर्जर सूखे पेड़ को, सब कहते हैं ठूठ।।
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जग में आवागमन का, चलता रहता चक्र।
अन्तरिक्ष में ग्रहों की, गति होती है वक्र।।
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वंशबेल चलती रहे, ऐसा वर दो नाथ।
पितरों का तर्पण करो, भक्ति-भाव के साथ।।
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जिनके पुण्य-प्रताप से, रिद्धि-सिद्धि का वास।
उनका कभी न कीजिए, जीवन में उपहास।।
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जीवित माता-पिता को, मत देना सन्ताप।
पितृपक्ष में कीजिए, वन्दन-पूजा-जाप।।
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अच्छे कामों को करो, सुधरेगा परलोक।
नेकी के ही कर्म से, फैलेगा आलोक।।
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बुरा कभी मत सोचिए, करना मत दुष्कर्म।
सेवा और सहायता, जीवन के हैं मर्म।।
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