मातृदिवस पर विशेष
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जो बच्चों को जीवन के,
कर्म सदा सिखलाती है।
ममता जिसके भीतर होती,
माता वही कहाती है
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माँ ने वाणी को उच्चारण का ढंग बतलाया है,
माता ने मुझको धरती पर चलना सिखलाया है,
खुद गीले बिस्तर में सोई, मुझे सुलाया सूखे में,
माँ के उर में ममता का व्याकरण समाया है।
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माता शब्द की व्यापकता का अनुमान
इसी बात से लगाया जा सकता है कि
दुख-दर्द के समय अन्तर्मन से
एक ही स्वर वाणी पर अपने आप आ जाता है-
‘हाय-मैया’
कभी विचार किया है कि यदि माँ नही होती
तो हम दुनिया में कैसे आ पाते?
माता के प्रति हमारी कितनी अगाध श्रद्धा और भक्ति है
इसका पता इसी बात से लग जाता है कि
देवी स्वरूपा माता के दर्शनों के लिए
पूरे वर्ष माँ के मन्दिरों में भीड़ लगी रहती है।
माता को ही जगत्-जननी का अमर पद प्राप्त है।
आदि-शक्ति के रूप में वह हमारे मन में
सरस्वती, पार्वती के रूप में विराजमान है।
माता को विश्व में प्रथम गुरू का सर्वोच्च स्थान प्राप्त है।
‘‘जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।’’
मातृ-दिवस पर,
हे माँ !
मैं तुमको कोटि-कोटि प्रणाम करता हूँ।
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शनिवार, 11 मई 2019
गद्य-पद्य "मातृ दिवस" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (12-05-2019) को
"मातृ दिवस"(चर्चा अंक- 3333) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
....
अनीता सैनी
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंमाँ को प्रणाम।
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह सराहनीय सृजन.सर👌
बेहतरीन सृजन आदरणीय 👌
जवाब देंहटाएंसादर
लाजवाब सृजन....
जवाब देंहटाएंमातृदिवस की शुभकामनाएं।