महक रहा है मन का आँगन,
दबी हुई कस्तूरी होगी।
दिल की बात नहीं कह पाये,
कुछ तो बात जरूरी होगी।।
सूरज-चन्दा जगमग करते,
नीचे धरती, ऊपर अम्बर।
आशाओं पर टिकी ज़िन्दग़ी,
अरमानों का भरा समन्दर।
कैसे जाये श्रमिक वहाँ पर,
जहाँ न कुछ मजदूरी होगी।
कुछ तो बात जरूरी होगी।।
मुट्ठी में है सारी दुनिया,
मोबाइल सब काम कर रहा।
चिट्ठी-पत्री का युग बीता,
पत्रालय आराम कर रहा।
ऊहापोह भरे जीवन में,
सबकी कुछ मजबूरी होगी।
कुछ तो बात जरूरी होगी।।
हर मुश्किल का समाधान है,
सुख-दुख का चल रहा चक्र है।
लक्ष्य दिलाने वाला पथ तो,
कभी सरल है, कभी वक्र है।
चरैवेति को भूल न जाना,
चलने से कम दूरी होगी।
कुछ तो बात जरूरी होगी।।
अरमानों के आसमान का,
ओर नहीं है, छोर नहीं है।
दिल से दिल को राहत होती,
प्रेम-प्रीत पर जोर नहीं है।
जितना चाहो उड़ो गगन में,
चाहत कभी न पूरी होगी।
कुछ तो बात जरूरी होगी।।
रूप-रंग पर गर्व न करना,
नश्वर काया, नश्वर माया।
बरगद-पीपल-नीम पथिक को,
देता हरदम शीतल छाया।
साजन से ही तो सजनी की,
सजी माँग सिन्दूरी होगी।
कुछ तो बात जरूरी होगी।।
|
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गुरुवार, 16 मई 2019
गीत "चलने से कम दूरी होगी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री मयंक')
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अरमानों के आसमान का,
जवाब देंहटाएंओर नहीं है, छोर नहीं है।
शाश्वत सत्य ... सुंदर
उम्दा प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएं