“नन्हे-मुन्ने”
(बालमन की सरल
अभिव्यक्ति)
बचपन में गुरुकुल हरिद्वार में पढ़ता था। यदा-कदा सहपाठी ब्रह्मचारियों
के साथ बाजार में भी जाना पड़ता था। तब मैं किताबों की दुकान पर जरूर जाता था और
घर से मिले अपने निजी खर्च में से कंजूसी करके पुस्तक खरीद लेता था। तब से ही
मुझे पुस्तकों का बहुत चाव रहा है और मेरी यह आदत बन गयी है कि मैं अपनी टेबिल
पर कोई काम पैण्डिंग नहीं छोड़ता हूँ।
कुछ दिनों पूर्व मुझे दिल्ली जाने का सौभाग्य मिला। वहाँ मेरी भेंट
अवकाश प्राप्त प्रधानाचार्या और बहुविधाओं में रचनाकरने वाली सुस्थापित कवयित्री
श्रीमती सूक्ष्म लता महाजन से हुई। बालसाहित्य के साथ-साथ आपकी कई अन्य पुस्तकें
भी अब तक प्रकाशित हो चुकी हैं। मुझे आपकी बालकृति “नन्हे-मुन्ने”
को पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इस कृति को पढ़कर कुछ लिखने के
लिए कम्प्यूटर के की-बोर्ड पर मेरी अंगुलियाँ मचल उठी।
“नन्हे-मुन्ने” बालकों
की रुचियों को दृष्टिगत रखकर बहुत आकर्षक रूप में प्रस्तुत की गयी कृति है।
बच्चों को कार्टून बहुत प्रिय होते हैं इसीलिए इसके आवरण पृष्ठ पर पेड़, बालक-बालिका, खरगोश, गेंद और
फूलों को करीने से सजाया गया है, जिसमें आसमान पर
कहीं-कहीं बादलों की छवि भी दृष्टिगोचर हो रही है। भीतर के पृष्ठ भले ही
श्वेत-श्याम हो लेकिन प्रत्येक बाल गीत के साथ उससे सम्बन्धित चित्र को भी लगाया
गया है।
कवयित्री ने अपनी इस बाल कृति में पंख
कहीं से ला दो माँ, राखी, पापा,
नन्ही किलकारी, तारों की बारात, तितली रानी, बचपन, सुप्रभात,
दादी जी की छड़ी, अधिकार, कटे पेड़, बैठी चिड़िया, नन्हे-मुन्ने,
बच्चों की दुनिया, अमराई, नीलकण्ठ, मेरी गुड़िया, हमारी
सभ्यता, पंछी, परी, छाता और सूरज, कम्प्यूटर-टी.वी. आदि 32 बालगीतों को स्थान दिया है।
इस कृति का शुभारम्भ “पंख कही से ला दो माँ”
से प्रारम्भ किया गया है। जिसमें बालक अपनी माँ से आग्रह करता है-
“परियों सा मुझको है बनना
उड़ना मुझे
सिखा दो माँ
नीले-पीले, लाल-सुनहरी
पंख कहीं से
ला दो माँ”
राखी के त्यौहार पर बहन भाई की कलाई पर राखी बाँधती है और जो उद्गार बहन
के मन में भाई के लिए होते हैं उनको सहजता से कवयित्री ने “राखी” नामक बालगीत मॆं प्रकट किया है-
“नन्हीं सी ये कलाइयाँ
बाँधें हैं
नेह की डोर
बहना राखी
बाँध रही
होकर मगन और
विभोर
खुश होकर के
देख रहा
भाई भी बहना
की ओर
तेरे मेर इस
प्रेम का
नहीं है कोई
छोर”
रिश्तों की महत्ता को समझाते हुए कनयित्री “पापा”
नामक बाल गीत में लिखती है-
“हर पल मानते मेरी हर बात
अच्छा लगाता
मुझको उनका साथ
पापा जब मेरे
पास हैं होते
फीकी लगती
मुझे हर सौगात”
बच्चों को चाँद-सितारे बहुत अच्छे लगते हैं बालगीत “तारों की बारात” में कवयित्री लिखती हैं-
“रंगों की है बिछी बिसात
तारों की आ
रही बारात
मधुर-मधुर
संगीत हुआ
कैसी सुन्दर
आई रात”
लगभग सभी बाल रचनाधर्मियों ने तितली पर जरूर अपनी लेखनी चलाई है। इस
कृति में भी “तितली” पर बाल-उद्गार
कुछ इस प्रकार प्रकट किये गये हैं-
“तितली रानी आओ खेलें
तितली बोली
ना-ना-ना
गुड़िया
दौड़ी उसके पीछे
तितली उड़ गई
हा-हा-हा”
"बचपन" को जीवन्त रूप में प्रस्तुत करते हुए
कबयित्री ने "बचपन" नामक बालगीत में कहा
है-
“बचपन भी क्या खूब है
जैसे कोमल
दूब है
ना ही चिन्ता,
ना ही फिकर है
सदा ही खिलती
धूप है”
"सुप्रभात" एक आम शब्द बन गया है जिसको लेकर
कवयित्री सूक्ष्म लता महाजन लिखती हैं-
“वो भोर कभी तो आयेगी
जो धरती का
तम खायेगी
चिड़ियों के
मधुरिम कलरव से
मन की बगिया
खिल जायेगी”
इस कृति की अट्ठारहवीं
कृति “नन्हे-मुन्ने” है, जो इस बालगीत संग्रह का शीर्षक गीत” है। कवयित्री ने अपने उद्गारों को इसमें कुछ इस प्रकार प्रस्तुत किया है-
“नन्हें मुन्ने हुए इक्ट्ठे
करने को कुछ
अद्भुत जग में
गूगल करके
ढूँढ रहे सब
कैसे खेलें
नया कोई खेल।
मम्मी-पापा
गुस्सा करते
लैपटॉप हमको
ना देते
कहते आँखें
होंगी खराब
मोबाइल फोन
से करो न मेल।“
"नीलकण्ठ" पर बाल कवितायें बहुत कम देखने को मिलती है
मगर कवयित्री ने इस पर भी कलम चलाते हुए कुछ इस प्रकार लिखा है-
“नीलकण्ठ दिख जाते जिस दिन
खुश होकर हम
गाते थे
परीक्षा में
हम सफल हो जायें
तीन बार
दुहराते थे”
गुड़िया नन्हें-मुन्नों का प्रिय विषय रहा है। मेरी गुड़िया शीर्षक से कवयित्री ने कुछ इस प्रकार अपने उद्गार प्रकट
किये हैं-
“सो जा मेरी गुड़िया
राजदुलारी
गुड़िया
परियों के
देश जाकर
खेलेंगे हम
गुड़िया”
इस प्रकार हम देखते हैं बालकवयित्री सूक्ष्म लता महाजन ने बाल
अभिरुचियों का ध्यान रखते हुए सरस बालगीतों को इस कृति में स्थान दिया है।
जिसमें से कुछ रचनाएँ तो भाव और भाषा की दृष्टि से बहुत अनूठी और हृदयग्राही बन
पड़ी हैं।
मुझे आशा ही नहीं अपितु विश्वास भी है कि बाल साहित्य के गगन पर आप एक नये
सूर्य की भाँति जाज्वल्यमान होंगी। साथ ही आशा करता हूँ कि यह बाल गीतों का संग्रह “नन्हें-मुन्ने”
समीक्षकों के दृष्टिकोण से भी उपयोगी सिद्ध होगा।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’
समीक्षक एवं साहित्यकार
टनकपुर-रोड, खटीमा
जिला-ऊधमसिंहनगर (उत्तराखण्ड) 262308
सम्पर्क-7906360576, 7906295141
ई-मेल- roopchandrashastri@gmail.com
वेब साइट- http://uchcharan.blogspot.com/
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गुरुवार, 2 मई 2019
समीक्षा "नन्हे-मुन्ने" (समीक्षक-डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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बहुत ही सुंदर विस्तृत समीक्षा पढ़ कर अविभूत हूँ आदरनीय। आपने मेरी रचनाओं को अपना बहुमूल्य समय व आशीर्वाद दिया इसके लिये ह्रदय से कोटिश आभार। आपकी प्रेरणा मुझ में अदम्य संबल का प्रादुर्भाव कर मेरी लेखनी को सशक्त करने में सहायक सिद्ध होगी। सादर नमन आदरनीय
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (04-05-2019) को "सुनो बटोही " (चर्चा अंक-3325) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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अनीता सैनी
समीक्षा और कविताओं के अंश पढ़कर सुकून मिला कितनी सरल सहज सरस अभिव्यक्ति बिलकुल बच्चों जैसी निश्छल निर्मल । लता जी को बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंआपकी समीक्षा निशब्द सराहनीय ।
सादर।