गघे नहीं खाते जिसे, तम्बाकू
वो चीज।
खान-पान की मनुज को, बिल्कुल
नहीं तमीज।।
--
रोग कैंसर का लगे, समझ
रहे हैं लोग।
फिर भी करते जा रहे, तम्बाकू
उपयोग।।
--
खैनी-गुटका-पान का, है
हर जगह रिवाज।
गाँजा, भाँग-शराब
का, चलन बढ़ गया आज।।
--
तम्बाकू को त्याग दो, होगा
बदन निरोग।
जीवन में अपनाइए, भोग
छोड़कर योग।।
--
पूरब वालो छोड़ दो, पश्चिम
की सब रीत।
बँधा हुआ सुर-ताल से, पूरब
का संगीत।।
--
खोलो पृष्ठ अतीत के, आयुध
के संधान।
सारी दुनिया को दिया, भारत
ने विज्ञान।।
--
जगतगुरू यह देश था, देता
जग को ज्ञान।
आज नशे की नींद में, सोया
चादर तान।।
|
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शुक्रवार, 31 मई 2019
दोहे "तम्बाकू दो छोड़" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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पूरब वालो छोड़ दो, पश्चिम की सब रीत।
जवाब देंहटाएंबँधा हुआ सुर-ताल से, पूरब का संगीत।।
बहुत बढ़िया,आदरणीय शास्त्री जी।
जगतगुरू यह देश था, देता जग को ज्ञान।
जवाब देंहटाएंआज नशे की नींद में, सोया चादर तान।।
स्थिति बहुत ही भयावह हो चुकी है,बहुत ही गंभीर और आवयश्यक विषय पर आप की बेहतरीन रचना ,सादर नमस्कार सर
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (01 -06-2019) को "तम्बाकू दो छोड़" (चर्चा अंक- 3353) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी