सूरज ने है रूप दिखाया।
गर्मी ने तन-मन झुलसाया।।
धरती जलती तापमान से।
आग बरसती आसमान से।।
लेकिन है भगवान कृपालू।
सबका रखता ध्यान दयालू।।
कुदरत ने फल उपजाये हैं।
जो सबके मन को भाये हैं।।
सूखी नदियों की रेती है।
लेकिन उनमें भी खेती है।।
ककड़ी-खीरा, खरबूजा हैं।
और रसीले तरबूजा हैं।।
रखते सबको सदा निरोगी।
नीम्बू पानी है उपयोगी।।
बेल और शहतूत निराले।
तन को ठण्डक देने वाले।।
नागर हो चाहे देहाती।
लीची सबको बहुत लुभाती।।
सेब-सन्तरा है गुणकारी।
पना आम का है हितकारी।।
मौसम के शीतल फल खाओ।
लू-गर्मी को दूर भगाओ।।
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रविवार, 5 मई 2019
बालकविता "कुदरत ने फल उपजाये हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जज्ञानवर्धक कविता... साधुवाद 🙏
जवाब देंहटाएंअपने बचपन में ऐसी कविताएँ हमको अपने दादी-नानी से सुनने को मिलती थीं. आज ऐसे कविताओं की जगह पॉप म्यूजिक ने ले ली है.
जवाब देंहटाएंबच्चों का बचपन वापस लाने के लिए ऐसी कविताओं का उपयोग किया जाना चाहिए.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति !