इक हादसे में उनसे मुलाकात हो गयी। रोज-रोज मिलने की शुरूआत हो गई।। देखा उन्हें मगर न कोई बात कर सके, केवल नजर मिली, नजर में बात हो गयी। रोज-रोज मिलने की शुरूआत हो गई।। वो भी थे बेकरार और हम भी थे गरजमन्द, दोनो के लिए प्रेम की सौगात हो गयी। रोज-रोज मिलने की शुरूआत हो गई।। इक दूजे के जज्बात दोनो तोलते रहे, हम डाल-डाल थे वो पात-पात हो गयी। रोज-रोज मिलने की शुरूआत हो गई।। खाई थी खेल में उन्होंने शह हजार बार, जब अन्त आ गया तो मेरी मात हो गई। रोज-रोज मिलने की शुरूआत हो गई।। धूप-छाँव के चले थे सिलसिले बहुत, मंजिल के बीच में ही तो बरसात हो गई। रोज-रोज मिलने की शुरूआत हो गई।। साया तलाशते रहे हम तो तमाम दिन, केवल इसी उधेड़-बुन में रात हो गई। रोज-रोज मिलने की शुरूआत हो गई।। आँखें खुली हसीन ख्वाब टूट गया था, सूरज चढ़ा हुआ था और प्रात हो गई। रोज-रोज मिलने की शुरूआत हो गई।। |
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मंगलवार, 28 जुलाई 2009
‘‘हसीन ख्वाब’’ (डा0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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जवाब देंहटाएंमहेन्द्र मिश्र जी!
जवाब देंहटाएंकविता या शायरी का
उम्र से भी रिश्ता होता है क्या?
मन पर भी कभी बुढ़ापा आता है क्या?
आपके जज्बात की कद्र करता हूँ।
लेकिन प्रश्न अपनी जगह पर जरूर है।
बहुत सुन्दर रचना।।
जवाब देंहटाएंमेरे खयाल से कविता ताउम्र होती है -- उम्र से इसका रिश्ता नही होता. गुस्ताखी माफ....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना
मोहक
kamaal ki kaarigari
जवाब देंहटाएंshabdon ki bhi
aur
shilp ki bhi
waah !
waah !
anand aa gaya.............
aapko badhaai antar se
khoob badhaaiji..................
गजब लिखा है !!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !!!
जवाब देंहटाएंवाह शाश्त्रीजी सही कहा. दिल हमेशा जवान रहें, बुढापा शरीर को आता है. भावनाएं और मन तो आदमी की अपनी सोच है. शानदार रचना. बहुत शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत बढ़िया लगा! अत्यन्त सुंदर रचना!
जवाब देंहटाएंkhwab mein hi unke deedar ho gaye
जवाब देंहटाएंbina dekhe bhi nazrein char ho gayin
roj roj milne ki shuruaat ho gayi
shandar likha hai.........khwab wakai bahut haseen hai.
बहुत सुन्दर रचना शास्त्रीजी और रचना से भी अधिक सुन्दर आपका यह जबाब :
जवाब देंहटाएंमहेन्द्र मिश्र जी!
कविता या शायरी का
उम्र से भी रिश्ता होता है क्या?
मन पर भी कभी बुढ़ापा आता है क्या?
आपके जज्बात की कद्र करता हूँ।
लेकिन प्रश्न अपनी जगह पर जरूर है।