डायरी से एक पुरानी गज़ल
इश्क की राह में चल कर बिखर गये हम तो। आग के ताप में तप कर निखर गये हम तो।। कल तलक ख्वाब था अब बनके हकीकत आया, उनका इक वार मेरे दिल में नसीहत लाया, अपने जज्बात में आकर सिहर गये हम तो। आग के ताप में तप कर निखर गये हम तो।। बदले हालात में, किस्मत ने साथ छोड़ दिया, बीती यादों ने मुकद्दर को गम से जोड़ दिया, तुम जिधर को चले थे, बस उधर गये हम तो। आग के ताप में तप कर निखर गये हम तो।। तुम कहाँ हो? मेरे हालात पर तरस खाओ, चाँदनी रात में आकर के दरस दिखलाओ, राह-ए -उल्फत में कुछ सुधर गये हम तो। आग के ताप में तप कर निखर गये हम तो।। |
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शुक्रवार, 10 जुलाई 2009
‘‘तप कर निखर गये हम तो’’ (डॉ रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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आग के ताप में तप कर निखर गये हम तो।।
जवाब देंहटाएं---
बहुत खूब
बहुत सुन्दर बढिया भावपूर्ण अभिव्यक्ति आभार
जवाब देंहटाएंbahut hi sunder gazal,bhavpurn.
जवाब देंहटाएंबहुत सहज ढंग से सुंदर अभिव्यक्ति !!
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार गज़ल है, शास्त्री जी. डायरी के इस पन्ने की तारीख भी डालते आप तो हम गज़ल लिखने का कारण भी पता लगा ही लेते....(गुस्ताखी माफ़..)
जवाब देंहटाएंआपके पुराने पन्नों में तो वाकई खजाना छिपा है.. ओल्ड इज गोल्ड ..आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव लिये है आप की यह कविता.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
ishq ki rahein kab aasan hoti hain
जवाब देंहटाएंishq sirf ishq hota hai...........bahut imtihan leta hai...........khoobsoorat rachna.
आग के ताप में तप कर निखर गये हम तो।।
जवाब देंहटाएंमय़ंक जी आग मे तप कर ही तो सोना निखरता है बहुत बडिया रचना के लिये बधाई
आग के ताप में तप कर निखर गये हम तो।।
जवाब देंहटाएंमय़ंक जी आग मे तप कर ही तो सोना निखरता है बहुत बडिया रचना के लिये बधाई