रंग भी रूप भी छाँव भी धूप भी, देखते-देखते ही तो ढल जायेंगे। देश भी भेष भी और परिवेश भी, वक्त के साथ सारे बदल जायेंगे।।
जग में आकर सभी हैं जगाते अलख, प्रीत भी रीत भी, शब्द भी गीत भी, एक न एक दिन तो मचल जायेंगे। वक्त के साथ सारे बदल जायेंगे।।
याद रक्खेंगे हम तो सदा ही तुम्हें, तंग दिल मत बनो, संगे दिल मत बनो, पत्थरों में से धारे निकल आयेंगे। वक्त के साथ सारे बदल जायेंगे।।
याद आता दुखों में ही भगवान है, दो कदम तुम बढ़ो, दो कदम हम बढ़ें, रास्ते मंजिलों से ही मिल जायेंगे। वक्त के साथ सारे बदल जायेंगे।।
पथ बुलाता तुम्हें रोशनी से भरा, हार को छोड़ दो, जीत को ओढ़ लो, फूल फिर से बगीचे में खिल जायेंगे। वक्त के साथ सारे बदल जायेंगे।। |
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गुरुवार, 30 जुलाई 2009
‘‘वक्त के साथ सारे बदल जायेंगे।’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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sसकारात्मक और सार्थक अभिव्यक्ति लिये सुन्दर रचना के लिये बहुत बहुत बधाई अज्ज उच्छारण का रन्ग सावन की हरियाली से खूब निखर निख्रा सा है आभार्
जवाब देंहटाएंके दुनिया से वाहर तो निकलो जरा,
जवाब देंहटाएंपथ बुलाता तुम्हें रोशनी से भरा,
हार को छोड़ दो, जीत को ओढ़ लो,
फूल फिर से बगीचे में खिल जायेंगे।
वक्त के साथ सारे बदल जायेंगे।।
बहुत बहुत बधाई !!!
बहुत ही सुन्दर रचना आभार्
जवाब देंहटाएंपत्थर कहां पिघलते हैं डाक्टर साहब.
जवाब देंहटाएंअनुराग शर्मा जी!
जवाब देंहटाएंआपका आभार।
विसंगति को ठीक कर दिया है।
bahut hi sundar, yatharth ko jatlaati kavita.. Badhai swekaare..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
उम्मीद की अलख जगाती सुन्दर रचना |आपके कुछ और गीत पढ़े , मुक्तक में यौवन ढल जाने पर सबकी गर्दन बहुत हिला करती है वाली पंक्ति ने बहुत हँसाया , कमाल है !
जवाब देंहटाएंवाह..बहुत बढिया.
जवाब देंहटाएंवक्त के साथ सारे बदल जायेंगे...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना.
Sahi kaha waqt ka har shi gulaam.
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
aaj ki rachna padhte padhte ek get yaad aa gaya aisa laga jaise wo hi tarz ho---------aap yun hi agar humse milte rahe dekhiye ek din pyar ho jayega.
जवाब देंहटाएंbahut hi khoobsoorat likha hai.
हर समस्या का होता समाधान है,याद आता दुखों में ही भगवान है,दो कदम तुम बढ़ो, दो कदम हम बढ़ें,रास्ते मंजिलों से ही मिल जायेंगे।वक्त के साथ सारे बदल जायेंगे।।
जवाब देंहटाएंek sakaratmak drishikon deti hui sarthak kavita..
padne par man mein achhi bavna jagati hai..
lagta hai aapke kamre ki saaj-sajja kuch badal gayi hai, haritimaa kuch pushpon ke saath, sundar, manoram..
अदा जी!
जवाब देंहटाएंहैडर में अनार (दाड़िम) का पेड़ है और उस पर मात्र एक पुष्प फल के आने की आशा जगा रहा है।
अत्यन्त सुंदर और शानदार रचना के लिए बधाई!
जवाब देंहटाएं