मानव दानव बन बैठा है, जग के झंझावातों में। दिन में डूब गया है सूरज, चन्दा गुम है रातों में।।
मुख में राम बगल में चाकू, मनवा है कितना पापी, दिवस-रैन उलझा रहता है, घातों में प्रतिघातों में। दिन में डूब गया है सूरज, चन्दा गुम है रातों में।।
ठोकर पर ठोकर खाकर भी, खुद को नही संभाला है, ज्ञान-पुंज से ध्यान हटाकर, लिपटा गन्दी बातों में। दिन में डूब गया है सूरज, चन्दा गुम है रातों में।।
भूल चुके हैं सीधी-सादी, सम्बन्धों की परिभाषा। विष के पादप उगे बाग में, जहर भरा है नातों में। दिन में डूब गया है सूरज, चन्दा गुम है रातों में।।
बाँट लिया गुलशन को, लेकिन दूर न मन के भेद हुए, खेल रहे हैं ग्राहक बन कर, दुष्ट-बणिक के हाथों में। दिन में डूब गया है सूरज, चन्दा गुम है रातों में।। |
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सोमवार, 27 जुलाई 2009
‘‘जग के झंझावातों में।’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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रचना की हर एक पंक्तियाँ सच्चाई बयान करती है! बहुत ही सुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंsunder rachana,khas kar aakhari stanza bahut khub
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर शब्दों के साथ प्रस्तुत सशक्त रचना, आभार्
जवाब देंहटाएंek sashakt rachna.......zindagi ki sachchaiyon ko ujagar karti huyi
जवाब देंहटाएंएक चमन में रहते-सहते, जटिल-कुटिल मतभेद हुए,बाँट लिया गुलशन को, लेकिन दूर न मन के भेद हुए,खेल रहे हैं ग्राहक बन कर, दुष्ट-बणिक के हाथों में।दिन में डूब गया है सूरज, चन्दा गुम है रातों में।।
जवाब देंहटाएंवाह शाश्त्रीजी नमन है आपको.
रामराम.
आदरणीय डॉ. शास्त्री साहब,
जवाब देंहटाएंहिन्दी गीतों का लुप्तप्राय सौन्दर्य आज देखने को और पढ़ने को मिला।
आज के हालातों को बयाँ करता हुआ गीत अपने भोले भावों से शिक्षा भी दे रहा है।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
सशक्त रचना है!
जवाब देंहटाएं------------
शैवाल (Algae): भविष्य का जैव-ईंधन
सच bolti हुयी रचना ............ लाजवाब, gazab का लिखा है
जवाब देंहटाएंपूरी रचना ही लाजवाब है हमेशा की तरह सच के करीब
जवाब देंहटाएंमुख में राम बगल में चाकू, मनवा है कितना पापी,
दिवस-रैन उलझा रहता है, घातों में प्रतिघातों में।
लाजवाब पँक्तियाँ हैं बहुत बहुत बधाई
आज की असलियत बयान कर दी है .. आपने इस रचना में !!
जवाब देंहटाएंshabd-shabd saarthak hai.........
जवाब देंहटाएंwaah
waah
kya baat kahdee shreeman !
abhibhoot kar diya
badhaai !
बहुत खूब शास्त्री जी !
जवाब देंहटाएंमानव दानव बन बैठा है,
जग की पग में यही पाते है
हरतरफ इंसान की शक्ल में,
बस भेडिये ही नजर आते है !