सावन का महीना बादलों की आँख-मिचौली और पानी नदारत है, -०-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०- चारों ओर सूखा और सिर्फ सूखा प्यासे हैं बाग, तड़ाग, व्यर्थ हो गई सब प्रार्थना और इबादत हैं -०-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०- खेतों में उड़ रही है धूल चमन में मुरझा रहे हैं फूल क्या आने वाली कयामत है? -०-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०-०- |
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बुधवार, 15 जुलाई 2009
‘‘पानी नदारत है, आने वाली कयामत है?’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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ghabraiye mat itni jaldi qayamat nhi aati.........ye to har saal ka haal hai.
जवाब देंहटाएंjab tak prakriti ka dohan hota rahega is haal ke liye taiyaar rahna padega.
bahut hi badhiya prashn uthaya hai aapne.
यदि वर्षा नहीं हुई तो वास्तव में दुर्भिक्ष हो जायेगा.
जवाब देंहटाएंप्रकृति से खिलवाड़ जारी रहा तो कयामत निश्चित है..आभार
जवाब देंहटाएंSookhe ki maar kaheen to kaheen baad ka khatraa........ upar vale ke khel bhi niraale hain
जवाब देंहटाएंआज बरसात हुई है दिल्ली में.. नहीं तो कयामत ही थी..
जवाब देंहटाएंसामयिक चिंता है आपकी, लेकिन प्रकृति के साथ हम जो कर रहे हैं, यह उसी का परिणाम है. वर्षा भी एक-आध महीना आगे खिसक गई है-- ऐसा लगता है ! क्यों न हम थोडी और प्रतीक्षा करें बादलों की ? क्या ख़याल है शास्त्रीजी ?? --आ.
जवाब देंहटाएंyeh sach mein ek kayamat hai..
जवाब देंहटाएंjyada bhi kayamat hai
kam bhi kayamat hai
बहुत ही बुरा होगा, मंहगाई पहले ही है, ओर अगर हालात ऎसे ही रहे तो ..... काश ऎसा ना हो जल्द ही पानी बरसे.
जवाब देंहटाएंइश्वर से प्रार्थना ही कर सकते हैं!! सो किये जा रहे हैं.
जवाब देंहटाएंभगवान अब तो दया करो।
जवाब देंहटाएंबारिश न होने से ही
जवाब देंहटाएंमहँगाई चरम पर है।
खेतों में उड़ रही है धूल
जवाब देंहटाएंचमन में मुरझा रहे हैं फूल
क्या आने वाली कयामत है?"
Agr yahi haal raha to
kyamat door nahi.
Aapne bilkul sahi likha hai.