गरज रहे हैं, लरज रहे हैं, काले बादल बरस रहे हैं। कल तक तो सावन सूखा था, धरती का तन-मन रूखा था, आज झमा-झम बरस रहे हैं। काले बादल बरस रहे हैं।। भीग रहे हैं आँगन-उपवन, तृप्त हो रहे खेत, बाग, वन, उमड़-घुमड़ घन बरस रहे हैं। काले बादल बरस रहे हैं।। मुन्ना भीगा, मुन्नी भीगी, गोरी की है चुन्नी भीगी, जोर-शोर से बरस रहे हैं। काले बादल बरस रहे हैं।। श्याम घटाएँ घिर-घिर आयी, रिम-झिम की बजती शहनाई, जी भर कर अब बरस रहे हैं। काले बादल बरस रहे हैं।। |
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मंगलवार, 28 जुलाई 2009
‘‘काले बादल बरस रहे हैं’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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अच्छा है कि वहां बादल बरस रहे हैं,
जवाब देंहटाएंहम तो यहां पानी को तरस रहे हैं.
देर आयद दुरूस्त आयद
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना
सुन्दर!!!
जवाब देंहटाएंआभार/ मगल भावनाऐ
हे! प्रभु यह तेरापन्थ
मुम्बई-टाईगर
SELECTION & COLLECTION
सचमुच आज तो बादल बरस रहे हैं कल रात से ही लखनऊ में अच्छी बारिश हुई..मौसम ठंडा हो गया है...आपकी कविता भी साथ में आनंद दे रही है..
जवाब देंहटाएंकल पहली बार दिल्ली में इस साल की मूसलाधार बारिश हुई है इसलिए आपकी कविता आनंद में सराबोर कर रही है।
जवाब देंहटाएंवाह बडी आनंद दायक रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बरसात का सजीव चित्रण किया है आपने...साधुवाद स्वीकारें...
जवाब देंहटाएंनीरज
Vakai Badal baras to rahe hain.
जवाब देंहटाएंकल थोडी सी बरसात हुई थी आज फिर सूखा है.
जवाब देंहटाएंआदरणीय डॉ. साहब,
जवाब देंहटाएंझूम झूम के बरसते सावन में गीत भिगो ले गया।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
khoob barse badal bhi aur aap bhi
जवाब देंहटाएंanand aa gaya..........
abhinandan !
वाह बहुत सुंदर रचना! अभी तो भारत में बारीश का मौसम है! खूब मज़े कीजिये!
जवाब देंहटाएंaapki kavita ne to delhi mein bhi barish karwa di........pahle kyun nhi likhi to shayad pahle hi barish aa jati..........bahut badhiya.
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