बढ़ेंगे तुम्हारी तरफ धीरे-धीरे। जुबाँ से खुलेंगे, हरफ धीरे-धीरे।। नया है मुसाफिर, नयी जिन्दगी है, नया फलसफा है, नयी बन्दगी है, पढ़ेंगे-लिखेंगे, बरक धीरे-धीरे। जुबाँ से खुलेंगे, हरफ धीरे-धीरे।। उल्फत की राहों की सँकरी गली है, अभी सो रही गुलिस्ताँ की कली है, मिटेगा दिलों का फरक धीरे-धीरे। जुबाँ से खुलेंगे, हरफ धीरे-धीरे।। दुर्गम डगर में हैं चट्टान भारी, हटानी पड़ेंगी, परत आज सारी, परबत बनेंगे, सड़क धीरे-धीरे। जुबाँ से खुलेंगे, हरफ धीरे-धीरे।। |
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रविवार, 19 जुलाई 2009
‘‘जुबाँ से खुलेंगे, हरफ धीरे-धीरे’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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मयंक जी आपकी कविता ने ऐसा जादू किया कि अपने हर्फ तो टिप्पणी के लिये फटाफट खुलने लगे बहुत बडिया रचना है बधाई
जवाब देंहटाएंआपने इतना बढ़िया रचना लिखा है कि मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकती!
जवाब देंहटाएंमिटेगा दिलों का फरक धीरे-धीरे।
जवाब देंहटाएंजुबाँ से खुलेंगे, हरफ धीरे-धीरे।।
शास्त्री जी बहुत ही सुन्दर सम्वेदनाए लिखी है आपने. बहुत अच्छा लगा
mitega dil ka farak dhire dhire,waah lajawab baat keh di.sunder
जवाब देंहटाएंबहुत ही लाजवाब रचना है
जवाब देंहटाएं---
पढ़िए: सबसे दूर स्थित सुपरनोवा खोजा गया
kuch wo kahenge kuch aap kahenge
जवाब देंहटाएंyun hi khulenge dil ke raaj dheere dheere
kabhi jazbaat bahakne lagenge
kabhi lafaz bhatakne lagenge
khulenge nazaron ke bandh dheere dheere
bahut hi khoobsoorat rachna likhi hai.........padhkar dil khush ho gaya
sundar rachna hai............
जवाब देंहटाएंbahut khoob kaha aapne
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
शास्त्री जी,
जवाब देंहटाएंशब्दों के सागर है आप तो,
मुझे आपकी कविताएँ बहुत अच्छी लगती है,
और आज की कविता के बारे मे क्या कहे..
बेहतरीन..कविता...
हरफ़ धीरे धीरे..बेहद उम्दा..
बधाई हो...
अरे!!कितनी सुन्दर रचना!! बधाई.
जवाब देंहटाएंगीत है या
जवाब देंहटाएंशब्दों का जादू है
कोमल है
अनुरागी है
दुर्गम डगर में हैं चट्टान भारी,
जवाब देंहटाएंहटानी पड़ेंगी, परत आज सारी,
परबत बनेंगे, सड़क धीरे-धीरे।
वाह!!!
बहुत ही लाजवाब सृजनः
उल्फत की राहों की सँकरी गली है,
जवाब देंहटाएंअभी सो रही गुलिस्ताँ की कली है,
मिटेगा दिलों का फरक धीरे-धीरे।
जुबाँ से खुलेंगे, हरफ धीरे-धीरे।।
बहुत ही भावपूर्ण सृजन आदरणीय सर | आपकी कलम को नमन है | जल्द ही सकुशल अपने ब्लॉग पर लौटें यही कामना करती हूँ |हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई |
वाह
जवाब देंहटाएंदुर्गम डगर में हैं चट्टान भारी,
जवाब देंहटाएंहटानी पड़ेंगी, परत आज सारी,
परबत बनेंगे, सड़क धीरे-धीरे।
जुबाँ से खुलेंगे, हरफ धीरे-धीरे।।
बहुत सुन्दर रचना
बहुत सुंदर सारगर्भित रचना ,आपको बहुत शुभकामनाएं आदरणीय शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएं