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फिर वही
मौसम सुहाना आ गया है
प्यार
करने का जमाना आ गया है
मुहब्बत
का असर होने लगा अब
पत्थरों
को गीत गाना आ गया है
मुद्दतों
से मौन में जो जी रहा था
सुमन को
बातें बनाना आ गया है
साज और
संगीत की सौगात पाकर
बेसुरों
को सुर लगाना आ गया है
आज फिर कलियाँ
हैं फूल जैसी
अब चमन
को खिलखिलाना आ गया है
जब हुई
रौशन शमा बाज़ार में
तन
पतिंगों को जलाना आ गया है
दिलजले
भी दिल्लगी करने लगे हैं
“रूप” का
ज़लवा पुराना आ गया है
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| "उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
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मंगलवार, 1 अप्रैल 2014
"ग़ज़ल-पत्थरों को गीत गाना आ गया है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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वाह बहुत खूब :)
जवाब देंहटाएंक्या कहने आदरणीय बहुत ही खूब वाह
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंआपने लिखा....
मैंने भी पढ़ा...
हमारा प्रयास हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना...
दिनांक 03/04/ 2014 की
नयी पुरानी हलचल [हिंदी ब्लौग का एकमंच] पर कुछ पंखतियों के साथ लिंक की जा रही है...
आप भी आना...औरों को बतलाना...हलचल में और भी बहुत कुछ है...
हलचल में सभी का स्वागत है...
वाह...बहुत ख़ूबसूरत रचना...
जवाब देंहटाएंआज फिर कलियाँ हैं फूल जैसी
जवाब देंहटाएंअब चमन को खिलखिलाना आ गया है..बहुत खूब..