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वही साक़ी वही मय
है, नई बोतल बदलते हैं
सुराखानों में दारू
के, नशीले जाम ढलते
हैं
कोई ग़म को भुलाता
है, कोई मस्ती को पाता
है,
तभी तो शाम होते ही, यहाँ अरमां निकलते
हैं
नहीं है तन-बदन का
होश, बूढ़े और जवानों को
ख़ुमारी के नशे में
तो, सभी के दिल मचलते
हैं
न अपनी कार भाती है, न बीबी याद आती है
किराये की सवारी
में, मज़े करने को चलते
हैं
हकीकत मानकर कोई, लुटाता “रूप” पर दौलत
खुली आँखों में ज़न्नत
के, सुनहरे ख़्वाब पलते हैं
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वाह सुंदर गजल ।
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बहुत सुन्दर सटीक भावपूर्ण अभिव्यक्ति.बहुत खूब कही है ग़ज़ल।
बेहतरीन ग़ज़ल बहुत खूब
जवाब देंहटाएंमन को छूती सुंदर गजल ----
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब -----
सादर ---
हकीकत मानकर कोई, लुटाता “रूप” पर दौलत
जवाब देंहटाएंखुली आँखों में ज़न्नत के, सुनहरे ख़्वाब पलते हैं
..ऐसे सपने देखकर बहुत देर बाद जगते हैं
बहुत सटीक प्रस्तुति
armaan abhi kuchh baaqi hain....
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