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जब से छोटा हो गया,
रुपये का आकार।
तब से बौना हो गया,
रिश्तों का संसार।।
--
बिगड़ रही है
व्यवस्था, बेबस है सरकार।
कीमत रुपये की घटी,
मँहगाई की मार।।
--
आम जरूरत का हुआ, मँहगा
सब सामान।
ऐसी हालत देख कर, जनता
है हैरान।।
--
फोन-कार के कर
दिये, अब तो सस्ते रेट।
लेकिन कैसे भरेगा,
इनसे भूखा पेट।।
--
सब्जी और अनाज के, बढ़े हुए हैं भाव।
अब तक भी आया नहीं,
कीमत में ठहराव।।
--
तेल कान में डाल
कर, सोई है सरकार।
निर्धन जनता के
लिए, महँगाई उपहार।।
--
अच्छे दिन का हो
गया, सपना अब काफूर।
सत्ता मिलते ही
हुए, मोदी मद में चूर।।
|
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सोमवार, 22 सितंबर 2014
"दोहे-महँगाई उपहार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सटीक दोहे ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति व रचना , आ. धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )