लालची कुत्तों से दामन को बचाना चाहिए।
अज़नबी घोड़ों पे बाज़ी ना लगाना चाहिए।।
आज फिर खुदगर्ज़ करने, चापलूसी आ गये,
चापलूसों पर भरोसा ना जमाना चाहिए।
बेच देंगे वतन को अपने, सियासत के फकीर,
मुल्क की जी-जान से अस्मत बचाना चाहिए।
कब तलक करते रहेंगे हम पड़ोसी पर यकीन,
युद्ध करके सबक कुछ इनको सिखाना चाहिए।
क़ातिलों को जेल में कबतक खिलाओगे कबाब,
ऐसे गद्दारों को फाँसी पे चढ़ाना चाहिए।
माफ करने की अदा, अच्छी नहीं मेरे हुजूर,
अब लचर कानून में बदलाव लाना चाहिए।
“रूप” दिखलाकर नहीं दौलत कमाना चाहिए,
अपनी मेहनत से मुकद्दर को बनाना चाहिए।
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शुक्रवार, 16 अक्टूबर 2015
ग़ज़ल "अपनी मेहनत से मुकद्दर को बनाना चाहिए" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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