आया भादो मास है, कृष्ण सँवारो काज।।
मनुज दनुज अब बन गया, भूल गया है शील।
देख अकेली नार को, बात करे अशलील।।
भोली चिड़िया देखकर, झपट रहा है बाज।
हुआ बहुत लाचार अब, जंगल का अधिराज।।
ईंधन पर अब हो गयी, मँहगाई की मार।
देखो डीजल कर गया, सत्तर रुपया पार।।
जिनको मत अपना दिया, वो ही हैं अब मौन।
जनता के दुख-दर्द की, बात सुने तब कौन।।
सूखे आँसू आँख के, सूने-सूने नैन।
अच्छे दिन के लिए सब, अब तक हैं बेचैन।।
कल सूखे का कोप था, आज बाढ़ की मार।
है कुदरत के सामने, शासन भी लाचार।।
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शुक्रवार, 31 अगस्त 2018
दोहे "कृष्ण सँवारो काज" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (०९-०८-२०२१) को
"कृष्ण सँवारो काज" (चर्चा अंक-४१५१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
कृपया बुधवार को सोमवार पढ़े।
जवाब देंहटाएंसादर
सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना! डीजल 70/- रुपया/लीटर आपके द्वारा यह रचना लिखी जाने के समय की दर है। अब वापस 70/- हो जाय, तो भी कुछ बात बने😊।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सार्थक दोहे।
जवाब देंहटाएंसादर।