आज अहोई-अष्टमी, दिन है कितना खास।
जिसमें पुत्रों के लिए, होते हैं उपवास।।
दुनिया में दम तोड़ता, मानवता का वेद।
बेटा-बेटी में बहुत, जननी करती भेद।।
पुरुषप्रधान समाज में, नारी का अपकर्ष।
अबला नारी का भला, कैसे हो उत्कर्ष।।
बेटा-बेटी के लिए, समता के हों भाव।
मिल-जुलकर मझधार से, पार लगाओ नाव।।
एक पर्व ऐसा रचो, जो हो पुत्री पर्व।
व्रत-पूजन के साथ में, करो स्वयं पर गर्व।।
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बुधवार, 31 अक्टूबर 2018
दोहे "आज अहोई पर्व" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मंगलवार, 30 अक्टूबर 2018
दोहे "अहोई पर्व" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
कुलदीपक के है लिए, पर्व अहोई खास।
होती अपने तनय पर, माताओं को आस।।
माताएँ इस दिवस पर, करती हैं अरदास।
उनके सुत का हो नहीं, मुखड़ा कभी उदास।।
सन्तानों के लिए है, यह अद्भुत त्यौहार।
बेटा-बेटी में करो, समता का ब्यौहार।।
शिशुओं की किलकारियाँ, गूँजें सबके द्वार।
मिलता बड़े नसीब से, मात-पिता का प्यार।।
घर के बड़े-बुजुर्ग है, जीवन में अनमोल।
मात-पिता के प्यार को, दौलत से मत तोल।।
चाहे कोई वार हो, कोई हो तारीख।
संस्कार देते हमें, कदम-कदम पर सीख।।
जीवन में उल्लास को, भर देते हैं पर्व।
त्यौहारों की रीत पर, हमको होता गर्व।।
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बालकविता "चिड़ियारानी मुझको रोज जगाती हो" ( डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मीठा राग सुनाती हो।
आनन-फानन में उड़ करके,
आसमान तक जाती हो।।
सूरज उगने से पहले तुम,
नित्य-प्रति उठ जाती हो।
चीं-चीं, चूँ-चूँ वाले स्वर से ,
मुझको रोज जगाती हो।।
तुम मुझको सन्देशा देती,
रोज सवेरे उठा करो।
अपनी पुस्तक को ले करके,
पढ़ने में नित जुटा करो।।
चिड़िया रानी बड़ी सयानी,
कितनी मेहनत करती हो।
एक-एक दाना बीन-बीन कर,
पेट हमेशा भरती हो।।
मेरे अगर पंख होते तो,
मैं भी नभ तक हो आता।
पेड़ो के ऊपर जा करके,
ताजे-मीठे फल खाता।।
अपने कामों से मेहनत का,
पथ हमको दिखलाती हो।।
जीवन श्रम के लिए बना है,
सीख यही सिखलाती हो।
जब मन करता मैं उड़ कर के,
नानी जी के घर जाता।
आसमान में कलाबाजियाँ.
करके सबको दिखलाता।।
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सोमवार, 29 अक्टूबर 2018
व्यंग्य गीत "श्लाघा मन-भाया करती है" (रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मुझसे बतियाने को
कोई,
चेली बन जाया करती है! उसकी बातें सुनकर मुझको, हँसी बहुत आया करती है! जान और पहचान नही है, देश-वेश का ज्ञान नही है, टूटी-फूटी रोमन-हिन्दी, हमें चिढ़ाया सा करती है! तब मुझको बातों-बातों में, हँसी बहुत आया करती है! कोई बिटिया बन जाती है, कोई भगिनी बन जाती है, कोई-कोई तो बुड्ढे की, साली कहलाया करती है! तब मुझको बातों-बातों में, हँसी बहुत आया करती है! आँख लगी तो सपना आया, आँख खुली तो मैंने पाया, बिन सिर पैरों की लिखने से, सैंडिल पड़ जाया करती हैं! तब मुझको बातों-बातों में, हँसी बहुत आया करती है! जाल-जगत की महिमा न्यारी, वाह-वाही लगती है प्यारी, जालजगत पर सबको अपनी, श्लाघा मन-भाया करती है! तब मुझको बातों-बातों में, हँसी बहुत आया करती है! |
रविवार, 28 अक्टूबर 2018
गीत "आज करवाचौथ पर मन में हजारों चाह हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
थक गईं नजरें तुम्हारे दर्शनों की आस में।
आ भी आओ चन्द्रमा तारों भरे आकाश में।।
चमकते लाखों सितारें किन्तु तुम जैसे कहाँ,
साँवरे के बिन कहाँ अटखेलियाँ और मस्तियाँ,
गोपियाँ तो लुट गईं है कृष्ण के विश्वास में।
आ भी आओ चन्द्रमा तारों भरे आकाश में।।
आ गया मौसम गुलाबी, महकता सारा चमन,
छेड़ती हैं साज लहरें, चहकता है मन-सुमन,
पुष्प, कलिकाएँ, लताएँ मग्न हैं परिहास में।
आ भी आओ चन्द्रमा तारों भरे आकाश में।।
आज करवाचौथ पर मन में हजारों चाह हैं,
सब सुहागिन तक रही केवल तुम्हारी राह हैं,
चाहती हैं सजनियाँ साजन बसे हों पास में।
आ भी आओ चन्द्रमा तारों भरे आकाश में।।
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शनिवार, 27 अक्टूबर 2018
गीत "मेरे माथे पे बिन्दिया चमकती रहे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
कर रही हूँ प्रभू से यही प्रार्थना।
ज़िन्दगी भर सलामत रहो साजना।।
उन्नति की सदा सीढ़ियाँ तुम चढ़ो,
आपकी सहचरी की यही कामना।
ज़िन्दगी भर सलामत रहो साजना।।
आभा-शोभा तुम्हारी दमकती रहे,
मेरे माथे पे बिन्दिया चमकती रहे,
मुझपे रखना पिया प्यार की भावना।
ज़िन्दगी भर सलामत रहो साजना।।
तीर्थ और व्रत सभी हैं तुम्हारे लिए,
चाँद-करवा का पूजन तुम्हारे लिए,
मेरे प्रियतम तुम्ही मेरी आराधना।
ज़िन्दगी भर सलामत रहो साजना।।
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शुक्रवार, 26 अक्टूबर 2018
दोहे "पावन करवाचौथ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
अपने पतियों पर करें, सभी नारियाँ गर्व।
करवाचौथ सुहाग का, होता पावन पर्व।।
सजनी करवाचौथ पर, रखती है उपवास।
साजन-सजनी के लिए, दिवस बहुत ये खास।।
जन्म-जिन्दगीभर रहे, सबका अटल सुहाग।
साजन-सजनी में सदा, बना रहे अनुराग।।
जरा-जरा सी बात पर, कभी
न हो तकरार।
पति-पत्नी के बीच में, आये नहीं दरार।।
प्रीति सदा बढ़ती रहे, आपस
में हो प्यार।
पावन करवाचौथ है, निष्ठा
का त्यौहार।।
वंश-बेल चलती रहे, हँसी-खुशी के साथ।
पति-पत्नी का उम्रभर, रहे सलामत साथ।।
परम्परा बदली बहुत, बदल न पाया ढंग।
अब भी पर्वों का चलन, नहीं हुआ है भंग।।
माता करती कामना, सुखी रहे परिवार।
छिने न करवाचौथ का, बहुओं
से अधिकार।।
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गुरुवार, 25 अक्टूबर 2018
गीत "प्यार से पुकार लो" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
वर्तमान कह रहा, भविष्य को सँवार लो।।
रश्मियाँ जवान हैं, हो रहा विहान है,
कुछ समय के बाद तो, ढलान ही ढलान हैं,
चार दिन की चाँदनी के बाद, अन्धकार है,
जीत में छिपी हुई, जिन्दगी की हार है,
तापमान कह रहा, सोच लो-विचार लो।
वर्तमान कह रहा, भविष्य को सँवार लो।।
मत करो कुतर्क को, सत्य स्वयंसिद्ध है,
मन को साफ कीजिए, पथ नहीं विरुद्ध है,
धर्म, प्रान्त-जाति के, बन्द अब विवाद हों,
मनुजता के नीड़ से, दूर सब विषाद हों,
स्वाभिमान कह रहा, दम्भ मत उधार लो।
वर्तमान कह रहा, भविष्य को सँवार लो।।
पंक में खिला कमल, किन्तु है अमल-धवल,
चोटियों से शैल की, हिम रहा सतत पिघल,
चाँद आपनी चाँदनी से, ताप को घटा रहा,
वाटिका का हर सुमन, गन्ध को लुटा रहा,
रूठकर जो जा रहे, उनको अब पुकार लो।
वर्तमान कह रहा, भविष्य को सँवार लो।।
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बुधवार, 24 अक्टूबर 2018
गीत "चीनी लड़ियाँ-झालर घर में कभी न लायें हम" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
इस दीवाली पर माटी के,
आओ दीप जलायें हम।
चीनी लड़ियाँ-झालर अपने,
घर में कभी न लायें हम।।
आओ स्वच्छता के नारे को,
दुनिया में साकार करें।
नहीं विदेशी सामानों को,
जीवन में स्वीकार करें।
छोड़ साज-संगीत विदेशी,
अपने साज बजायें हम।
चीनी लड़ियाँ-झालर अपने,
घर में कभी न लायें हम।।
कंकरीट की खेती से,
धरती को हमें बचाना है।
खेतों में श्रम करके हमको,
गेहूँ-धान उगाना है।
अपने खेतों की मेढ़ों पर,
आओ वृक्ष लगायें हम।
चीनी लड़ियाँ-झालर अपने,
घर में कभी न लायें हम।।
मजहब के ठेकेदारों की
बन्द दुकानें अब कर दो।
भारत में भाईचारे की,
चलो भावना को भर दो।
लालन-पालन करने वाली,
माँ की महिमा गायें हम।
चीनी लड़ियाँ-झालर अपने,
घर में कभी न लायें हम।।
असली घर में नकली पौधों
का, अब कोई काम न हो।
कुटिया में महलों में अपने
कहीं छलकते जाम न हो।
बन्द करो मय-खाने, अब
ये
शासन को चेतायें हम।
चीनी लड़ियाँ-झालर अपने,
घर में कभी न लायें हम।।
देव संस्कति को अपनाओ,
दानवता से मुँह मोड़ो।
राम और रहमान एक
हैं
मानवता को मत छोड़ो।
भेद-भाव, अलगाववाद का,
वातावरण मिटायें हम।
चीनी लड़ियाँ-झालर अपने,
घर में कभी न लायें हम।।
दीपमालिका पर दीपों से,
जगमग कुटिया-भवन करें।
मुसलिम पढ़ें नमाज और
सब हिन्दु मिलकर हवन करें।
घर-आँगन को स्वच्छ करें,
पावन परिवेश बनायें हम।।
चीनी लड़ियाँ-झालर अपने,
घर में कभी न लायें हम।।
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