गीतों के सागर से, सब दूर गरल कर दो।।
दिन-रात तपस्या कर, मैंने पूजा तुमको,
जीवन भर का मेरा, संधान सफल कर दो।
गीतों के सागर से, सब दूर गरल कर दो।।
कुछ भी तो नहीं मेरा, माँ सब कुछ है तेरा,
इस रीती गागर में, निज स्नेह सबल भर दो।
गीतों के सागर से, सब दूर गरल कर दो।।
लिखता हूँ जो कुछ मैं, वो धूमिल हो जाता,
मसि देकर माता तुम, छवि धवल-प्रबल कर दो।
गीतों के सागर से, सब दूर गरल कर दो।।
जितना माँगा मैंने, उससे है अधिक दिया,
मन के मनके मेरे, माता उज्जवल कर दो।
गीतों के सागर से, सब दूर गरल कर दो।। |
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शनिवार, 13 अक्तूबर 2018
वन्दना "मनके मनकों को तुम, माता उज्जवल कर दो" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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