वर्तमान कह रहा, भविष्य को सँवार लो।।
रश्मियाँ जवान हैं, हो रहा विहान है,
कुछ समय के बाद तो, ढलान ही ढलान हैं,
चार दिन की चाँदनी के बाद, अन्धकार है,
जीत में छिपी हुई, जिन्दगी की हार है,
तापमान कह रहा, सोच लो-विचार लो।
वर्तमान कह रहा, भविष्य को सँवार लो।।
मत करो कुतर्क को, सत्य स्वयंसिद्ध है,
मन को साफ कीजिए, पथ नहीं विरुद्ध है,
धर्म, प्रान्त-जाति के, बन्द अब विवाद हों,
मनुजता के नीड़ से, दूर सब विषाद हों,
स्वाभिमान कह रहा, दम्भ मत उधार लो।
वर्तमान कह रहा, भविष्य को सँवार लो।।
पंक में खिला कमल, किन्तु है अमल-धवल,
चोटियों से शैल की, हिम रहा सतत पिघल,
चाँद आपनी चाँदनी से, ताप को घटा रहा,
वाटिका का हर सुमन, गन्ध को लुटा रहा,
रूठकर जो जा रहे, उनको अब पुकार लो।
वर्तमान कह रहा, भविष्य को सँवार लो।।
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गुरुवार, 25 अक्तूबर 2018
गीत "प्यार से पुकार लो" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सुन्दर भावधारा , बधाई !
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी आप जल्दी स्वस्थ होकर लौटे ऐसे मंगलकामनाएं बहुत समय हो गया आपके दर्शन और आशीर्वाद नहीं मिला
जवाब देंहटाएंअद्भुत गेयता, जीवन के सारतत्व छिपाये।
जवाब देंहटाएंअति सुंदर भावप्रवण गीत
जवाब देंहटाएंआशा है पूर्णतया स्वस्थ होंगे
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना। आपके शीघ्र पूर्ण स्वस्थ होने की शुभकामनाओं के साथ सादर प्रणाम।
जवाब देंहटाएंवाह! आदरणीय बहुत सुंदर गीत लय शिल्प बेमिसाल।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावपूर्ण संदेशपूर्ण रचना। आपको मेरी हार्दिक शुभकामनाएं ।
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