जब से जन्मा जगत में, पापी पाकिस्तान।
साजिश तब से कर रहा, वो बन कर शैतान।।
जब-जब पाकिस्तान ने, किया यहाँ उत्पात।
तब-तब भारतवर्ष से, मिली उसे है मात।।
बीते सत्तर साल में, हरदम रहा खिलाफ।
ऐसे बेईमान को, कैसे कर दें माफ।।
बात-चीत होगी तभी, जब होंगे दिल साफ।
लेकिन होना चाहिए, सही-सही इंसाफ।।
सीमाओं पर देश की, हैं जवान तैनात।
बैरी को जो दे रहे, कदम-कदम पर मात।।
फैलाते जो देश में, जगह-जगह आतंक।
मानवता के नाम पर, समझो उन्हें कलंक।।
बुरे काम का तो बुरा, होता है निष्कर्ष।
अपनी रक्षा के लिए, सक्षम भारतवर्ष।।
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गुरुवार, 28 फ़रवरी 2019
दोहे "सक्षम भारतवर्ष" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
बुधवार, 27 फ़रवरी 2019
गीत "फिर से बगिया है बौराई" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
पवन बसन्ती लुप्त हो गई,
मौसम ने ली है अँगड़ाई।
गेहूँ की बालियाँ सुखाने,
पछुआ पश्चिम से है आई।।
पर्वत का हिम पिघल रहा है,
निर्झर बनकर मचल रहा है,
जामुन-आम-नीम गदराये,
फिर से बगिया है बौराई।
गेहूँ की बालियाँ सुखाने,
पछुआ पश्चिम से है आई।।
रजनी में चन्दा दमका है,
पूरब में सूरज चमका है,
फुदक-फुदककर शाखाओं पर,
कोयलिया ने तान सुनाई।
गेहूँ की बालियाँ सुखाने,
पछुआ पश्चिम से है आई।।
वन-उपवन की शान निराली,
चारों ओर विछी हरियाली,
हँसते-गाते सुमन चमन में,
भँवरों ने गुंजार मचाई।
गेहूँ की बालियाँ सुखाने,
पछुआ पश्चिम से है आई।।
सरसों का है रूप सलोना,
कितना सुन्दर बिछा बिछौना,
मधुमक्खी पराग लेने को,
खिलते गुंचों पर मँडराई।
गेहूँ की बालियाँ सुखाने,
पछुआ पश्चिम से है आई।।
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मंगलवार, 26 फ़रवरी 2019
दोहे "समझौता अन्याय से, नहीं हमें मंजूर"
उत्तर देता रहेगा, दुश्मन को माकूल।।
खाम-खयाली में यहाँ, रहना नहीं हुजूर।
समझौता अन्याय से, नहीं हमें मंजूर।।
जितनी मिली चुनौतियाँ, सब करली स्वीकार।
कायर के घर में किया, सेनाओं ने वार।।
रणकौशल में निपुण हैं, सैनिक-सेनाधीश।
झुकने देंगे वो नहीं, भारत माँ का शीश।।
अब भी आओ होश में, कहता हिन्दुस्तान।
नहीं बचेगा युद्ध में, साबुत पाकिस्तान।।
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सोमवार, 25 फ़रवरी 2019
दोहे "जग में अन्तरजाल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
नूतन आविष्कार ने, कैसा किया कमाल।
गाँव-गाँव में सुलभ है, अब तो अन्तरजाल।।
कब किसको क्या चाहिए, सबका रखता ख्याल।
संचित अन्तरजाल पर, सभी तरह का माल।।
मिलते अन्तरजाल पर, सभी तरह के चित्र।
रुचियों के अनुसार ही, यहाँ बनाओ मित्र।।
रोज फेसबुक-ब्लॉग पर, लिक्खो नवल विचार।
बात-चीत का आजकल, नेट सबल आधार।।
ब्लॉग-फेसबुक में भरा, भावों का मकरन्द।
पढ़ने-लिखने में जहाँ, मिल जाता आनन्द।।
मेल-व्हाट्सप ने किया, काम बहुत आसान।
बिना चिट्ठियों के हुए, पत्रालय सुनसान।।
मोती माणिक युक्त है, गहरा सागर ताल।
नवयुग का भगवान है, जग में अन्तरजाल।।
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रविवार, 24 फ़रवरी 2019
कविता "मैं 'मयंक' हूँ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
चाहे चन्दा में कितने ही, धब्बे काले-काले हों।
सूरज में चाहे कितने ही, सुख के भरे उजाले हों।
लेकिन वो चन्दा जैसी, शीतलता नहीं दिखायेगा।
अन्तर के अनुभावों में, कोमलता नहीं चगायेगा।।
सूरज में है तपन, चाँद में ठण्डक चन्दन जैसी है।
प्रेम-प्रीत के सम्वादों की, गुंजन-वन्दन जैसी है।।
सूरज छा जाने पर पक्षी, नीड़ छोड़ उड़ जाते हैं।
चन्दा के आने पर, फिर अपने घर वापिस आते हैं।।
सूरज सिर्फ काम देता है, चन्दा देता है विश्राम।
निशा-काल में तन-मन को, मिल जाता है पूरा आराम।।
निशाकाल में शशि को, सब ही प्यार दिया करते हैं।
मैं 'मयंक' हूँ, मेरी सब मनुहार किया करते हैं।।
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शनिवार, 23 फ़रवरी 2019
दोहागीत "समय का चक्र" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
समय-समय की बात है, समय-समय का फेर।
मिट्टी को कंचन करे, नहीं लगाता देर।।
समय पड़े पर गधे को, बाप बनाते लोग।
समय बनाता सब जगह, कुछ संयोग-वियोग।।
समय न करता है दया, जब अपनी पर आय।
ज्ञानी-ध्यानी-बली को, देता धूल चटाय।।
समय अगर अनुकूल है, कायर लगते शेर।
मिट्टी को कंचन करे, नहीं लगाता देर।।
समय-समय की बात है, समय-समय के ढंग।
जग में होते समय के, बहुत निराले ढंग।।
पल-पल में है बदलता, सरल कभी है वक्र।
रुकता-थकता है नहीं, कभी समय का चक्र।।
राजाओं के महल भी, होते देखे ढेर।
मिट्टी को कंचन करे, नहीं लगाता देर।।
गया समय आता नहीं, करनी को कर आज।
मत कर सोच-विचार तू, करले पूरे काज।।
हारा है कर्तव्य से, दुनिया में अधिकार।
श्रम-निष्ठा से ही सदा, बनता है आधार।।
ईश्वर के घर देर है, समझो मत अंधेर।
मिट्टी को कंचन करे, नहीं लगाता देर।।
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शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2019
दोहे "कभी न करना माफ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मोदी पाकिस्तान को,
कभी न करना माफ।
नक्शे पर से अब करो,
उस पापी को साफ।।
आजादी से पूर्व
का, अब हो हिन्दुस्तान।
बँटवारे के पाप
का, अन्त करो श्रीमान।।
विष हो जिनके दाँत
में, वो ही होते नाग।
चतुर-चपल-मक्कार
को, दुनिया कहती काग।।
मानवता को दे रहा,
जो विषधर सन्ताप।
उस पापी के शीश
को, कुचल दीजिये आप।।
दानवता को देवता, करते
नहीं पसन्द।
अब आतंकी का करो, चारा-पानी
बन्द।।
अपनी सेना पर सदा,
भारत करता नाज।
सेना ही तो शत्रु
का, करती सही इलाज।।
कूटनीति से अब नही,
यहाँ चलेगा काम।
सारे जग में हो
गया, आज पाक बदनाम।।
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गुरुवार, 21 फ़रवरी 2019
दोहे "बहुत बड़ा नुकसान" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
लिया नामवर सिंह
ने, अब पूरा अवकाश।
सूना-सूना लग रहा,
हिन्दी का आकाश।।
ईश्वर ने दी थी
जिन्हें, सच्ची-वाचिक शक्ति।
कलमकार थे नामवर,
बहुत विलक्षण व्यक्ति।।
किया नामवर सिंह
ने, हिन्दी पर उपकार।
सारे जग में कर
दिया, हिन्दी को गुलजार।।
पंचतत्व में मिल
गया, हिन्दी का अब लाल।
हिन्दी की आलोचना,
अब हो गयी निढाल।।
भाषा के जब भीष्म
को, उड़ा ले गया काल।
आलोचक का हो गया,
तब से बहुत अकाल।।
काव्य-गगन के
सूर्य का, भाषा से अवसान।
देवनागरी का हुआ,
बहुत बड़ा नुकसान।।
शब्दों के
श्रद्धा-सुमन, और हृदय के भाव।
करूँ समर्पित
नामवर, मैं अपने अनुभाव।।
|
बुधवार, 20 फ़रवरी 2019
गीत "रिश्ता आज पुनीत हो गया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
जो लगता था कभी पराया,
जाने कब मनमीत हो गया।
पतझड़ में जो लिखा तराना,
वो वासन्ती गीत हो गया।।
अच्छे लगते हैं अब सपने,
अनजाने भी लगते अपने,
पारस पत्थर को छू करके,
रिश्ता आज पुनीत हो गया।
मैंने जब सरगम को गाया,
उसने सुर में ताल बजाया,
गायन-वादन के संगम से,
मनमोहक संगीत हो गया।
सुलझ गया है ताना-बाना,
लगता है संसार सुहाना,
बासन्ती अब सुमन हो गये,
जीवन आशातीत हो गया।
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मंगलवार, 19 फ़रवरी 2019
गीत "जीत का आचरण" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
सीखिए गीत से, गीत का व्याकरण।।
बात कहने से पहले विचारो जरा
मैल दर्पण का अपने उतारो जरा
तन सँवारो जरा, मन निखारो जरा
आइने में स्वयं को निहारो जरा
दर्प का सब हटा दीजिए आवरण।
सीखिए गीत से, गीत का व्याकरण।।
मत समझना सरल, ज़िन्दग़ी की डगर
अज़नबी लोग हैं, अज़नबी है नगर
ताल में जोहते बाट मोटे मगर
मीत ही मीत के पर रहा है कतर
सावधानी से आगे बढ़ाना चरण।
सीखिए गीत से, गीत का व्याकरण।।
मनके मनकों से होती है माला बड़ी
तोड़ना मत कभी मोतियों की लड़ी
रोज़ आती नहीं है मिलन की घड़ी
तोड़ने में लगी आज दुनिया कड़ी
रिश्ते-नातों का मुश्किल है पोषण-भरण।
सीखिए गीत से, गीत का व्याकरण।।
वक्त की मार से तार टूटे नहीं
भीड़ में मीत का हाथ छूटे नहीं
खीर का अब भरा पात्र फूटे नहीं
लाज लम्पट यहाँ कोई लूटे नहीं
प्रीत के गीत से कीजिए जागरण
सीखिए गीत से, गीत का व्याकरण।।
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सोमवार, 18 फ़रवरी 2019
दोहे "आती इन्दिरा याद" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
बिना युद्ध के वीर
क्यों, होते रोज शहीद।
माँ-बहनों की
दिनों-दिन, टूट रही उम्मीद।।
अच्छी लगती है
बहुत, जोशीली तकरीर।
लेकिन भाषण पर अमल,
कब होगा प्रणवीर।।
जो कुछ भाषण में
कहा, पूर्ण करो वागीश।
बैरी के अब काटिए,
बदले में सौ शीश।।
अब तक पाकिस्तान
को, किया नहीं बरबाद।
लोगों को आने लगी,
इन्दिरा जी फिर याद।।
सरहद पर निर्दोष
का, अगर बह गया खून।
नहीं थमेगा फिर
कभी, सिर पर चढ़ा जुनून।।
लोकतन्त्र में लोक
का, होता बहुत महत्व।
रखो बनाकर परस्पर,
इनमें ठोस घनत्व।।
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