आम आदमी के नहीं,
हुआ दुखों का अन्त।
शीत और बरसात से, फीका
पड़ा बसन्त।।
वासन्ती परिवेश
में, काँप रहा है गात।
अब भी रोज पहाड़
पर, होता है हिमपात।।
मौसम को भगवान भी,
गया आज तो भूल।
टेसू के भी पेड़
पर, खिले न अब तक फूल।।
बदल रहा है आदमी, ज्यों-ज्यों
अपने रंग।
मौसम भी है बदलता,
त्यों-त्यों अपने ढंग।।
रण कौशल के नाम पर, थोथी है हुंकार।
चूहे बूढ़े शेर
को, रोज रहे ललकार।।
|
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सोमवार, 11 फ़रवरी 2019
दोहे "फीका पड़ा बसन्त" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बदल रहा है आदमी, ज्यों-ज्यों अपने रंग।
जवाब देंहटाएंमौसम भी है बदलता, त्यों-त्यों अपने ढंग।।
सच आदमी की तरह मौसम भी बदलता जा रहा है
बहुत सुन्दर ,,,