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छठपूजा का आ गया, फिर पावन त्यौहार।
माता जन-गण के हरो, अब तो सभी विकार।।
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लोग छोड़कर आ गये, अपने-अपने नीड़।
सरिताओं के तीर पर, लगी हुई है भीड़।।
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अस्तांचल की ओर जब, रवि करता प्रस्थान।
छठ पूजा पर अर्घ्य तब, देता हिन्दुस्थान।।
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परम्पराओं पर टिका, सारा कारोबार।
मान्यताओं में है छिपा, जीवन का सब सार।।
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षष्टी मइया सभी का, करती बेड़ा पार।
माता ही सन्तान को, करती प्यार अपार।।
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छठपूजा के दिवस पर, कर लेना उपवास।
अन्तर्मन से कीजिए, माता की अरदास।।
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उदित-अस्त रवि को सदा, अर्घ्य चढ़ाना नित्य।
देता है जड़-जगत को, नवजीवन आदित्य।।
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कठिन तपस्या के लिए, छठ का है त्यौहार।
व्रत पूरा करके करो, ग्रहण शुद्ध आहार।।
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पूर्वांचल से हो गया, छठ माँ का उद्घोष।
दुनियाभर में किसी का, रहे न खाली कोष।।
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गुरुवार, 31 अक्टूबर 2019
दोहे "षष्टी मइया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
ग़ज़ल "प्यार का पाठ पढ़ाता क्यों है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
अजनबी ख्वाब में आता क्यों है
हाले-दिल अपना सुनाता क्यों है
अपने लब पे अधूरी प्यास लिए
तिशनगी अपनी बुझाता क्यों है
कौन से जन्म का ये नाता है
हमको अपना वो बताता क्यों है
खुली आँखों में रूबरू नहीं होता
अपना अधिकार जताता क्यों है
बात करता है चाँद-तारों की
झूठ से अपने लुभाता क्यों है
जिसका कोई वजूद है ही नहीं
वक्त-बेवक्त सताता क्यों है
रूप और रंग-गन्ध का लोभी
प्यार का पाठ पढ़ाता क्यों है
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बुधवार, 30 अक्टूबर 2019
ग़ज़ल "‘रूप’ का इस्तेमाल मत करना" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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जिन्दगी में बबाल मत करना
प्यार में कुछ सवाल मत करना
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ये जहाँ आग का समन्दर है
तैरने का खयाल मत करना
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बेजुबानों में जान होती है
उनका झटका-हलाल मत करना
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प्रीत का ताल तो अनोखा है
डूबने का मलाल मत करना
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नेक-नीयत से मंजिले मिलतीं
झूठ से कुछ कमाल मत करना
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दे रही सीख है हमें मकड़ी
दिल को अपने निढाल मत करना
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इश्क की तो अलग रवायत है
‘रूप’ का इस्तेमाल मत करना
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सोमवार, 28 अक्टूबर 2019
ग़ज़ल "तो कोई बात बने" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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जिन्दगी साथ
निभाओ, तो कोई
बात बने
राम सा खुद को बनाओ, तो कोई बात बने -- एक दिन दीप जलाने से भला क्या होगा रोज दीवाली मनाओ, तो कोई बात बने -- इन बनावट के उसूलों में, धरा ही क्या है प्यार की आग जगाओ, तो कोई बात बने -- सिर्फ पुतलों के जलाने से, फायदा क्या है दिल के रावण को जलाओ, तो कोई बात बने --
क्यों
खुदा कैद किया, दैर-ओ-हरम
में नादां
नूर का‘रूप’ बसाओ, तो कोई बात बने -- |
दोहे "पावन प्यार-दुलार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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यज्ञ-हवन करके बहन, माँग रही वरदान।
भइया का यमदेवता, करना शुभ-कल्याण।।
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भाई बहन के प्यार का, भइया-दोयज पर्व।
अपने भइया पर करें, सारी बहनें गर्व।।
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तिलक दूज का कर रहीं, सारी बहनें आज।
सभी भाइयों के बने, सारे बिगड़े काज।।
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रोली-अक्षत-पुष्प का, पूजा का ले थाल।
बहन आरती कर रही, मंगल दीपक बाल।।
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एक बरस में एक दिन, आता ये त्यौहार।
अपनी रक्षा का बहन, माँग रही उपहार।।
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जब तक सूरज-चन्द्रमा, तब तक जीवित प्यार।
दौलत से मत तोलना, पावन प्यार-दुलार।।
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कितना अद्भुत है यहाँ, रिश्तों का संसार।
जीवन जीने के लिए, रिश्ते हैं आधार।।
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रविवार, 27 अक्टूबर 2019
दोहे "अन्नकूट पूजा-गौमाता से प्रीत" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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गोवर्धन पूजा करो, शुद्ध करो परिवेश।
गोसंवर्धन से करो, उन्नत अपना देश।
अन्नकूट के दिवस पर, करो अर्चना आज।
गोरक्षा से सबल हो, पूरा देश समाज।।
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श्रीकृष्ण ने कर दिया, माँ का ऊँचा भाल।
इस अवसर पर आप भी, बन जाओ गोपाल।।
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गौमाता से ही मिले, दूध-दही, नवनीत।
सबको होनी चाहिए, गौमाता से प्रीत।।
गइया के घी-दूध से, बढ़ जाता है ज्ञान।
दुग्धपान करके बने, नौनिहाल बलवान।।
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कैमीकल का उर्वरक, कर देगा बरबाद।
फसलों में डालो सदा, गोबर की ही खाद।।
गंगा-गइया का रखो, आप हमेशा ध्यान।
बन्द कसाईघर करो, कहलाओ इंसान।।
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गीत "मिट्टी के ही दीपक सदा जलाओ तुम" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
उत्सव में साकार बनाओ तुम।
अपने घर में मिट्टी के ही,
दीपक सदा जलाओ तुम।।
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चीनी लड़ियाँ नहीं लगाना, अबकी बार दिवाली
में,
योगदान सबको करना है, अपनी अर्थप्रणाली में,
अपने जन-गण की ताकत,
दुनिया को आज दिखाओ तुम।
अपने घर में मिट्टी के ही,
दीपक सदा जलाओ तुम।।
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महापर्व पर रहे न कोई, नर-नारी कंगाली में,
खुश होकर खुशियों को बाँटो, रहो न खामखयाली
में,
कानों को जो सबको भाये,
वैसा साज बजाओ तुम।
अपने घर में मिट्टी के ही,
दीपक सदा जलाओ तुम।।
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चहल-पहल होती पर्वों पर, हाट और बाजारों
में,
सावधान रहना है सबको, चूक न हो रखवाली में,
काँटे-कंकड़ रहे न पथ में,
ऐसी राह बनाओ तुम।
अपने घर में मिट्टी के ही,
दीपक सदा जलाओ तुम।।
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भरी हुई है वैज्ञानिकता, भारत के त्यौहारों
में,
प्रीत-रीत से दिये जलाओ, घर-आँगन दीवारों
में,
ईद-दिवाली-होली मिलकर,
सबके साथ मनाओ तुम।
अपने घर में मिट्टी के ही,
दीपक सदा जलाओ तुम।।
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ब्रह्मा बन कच्ची माटी को, देते जो आकारों
में,
खुशियाँ लाती है दीवाली, कारीगर कुम्भारों में,
उनकी रचनाकारी का भी,
कुछ तो दाम लगाओ तुम।
अपने घर में मिट्टी के ही,
दीपक सदा जलाओ तुम।।
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शनिवार, 26 अक्टूबर 2019
दोहे "रौशन हो परिवेश" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
दीपों की
दीपावली, देती है सन्देश।
घर-आँगन
के साथ में, रौशन हो परिवेश।।
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पाकर
बाती-नेह को, लुटा रहा है नूर।
नन्हा
दीपक कर रहा, अन्धकार को दूर।।
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झिलमिल-झिलमिल
जल रहे, माटी के ये दीप।
देवताओं
के चित्र के, रखना इन्हें समीप।।
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गौरी और
गणेश के, रहें शारदा साथ।
चरणों में
इनके सदा, रोज झुकाओ माथ।।
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कभी
विदेशी माल का, करना मत उपयोग।
सदा
स्वदेशी का करो, जीवन में उपभोग।।
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मेरे
भारतवासियों, ऐसा करो चरित्र।
दौलत अपने
देश की, रखो देश में मित्र।।
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त्यौहारों
के मूल में, छिपे हुए आदेश।
सुखमय जीवन
के लिए, ऋषियों के सन्देश।।
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नहीं
अकारण हैं बने, पर्व और त्यौहार।
उत्सव देते
हैं हमें, जीने का आधार।।
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शुक्रवार, 25 अक्टूबर 2019
गीत "नेह के दीपक" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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दीप खुशियों के जलाओ, आ रही दीपावली।
रौशनी से जगमगाती, भा रही दीपावली।।
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क्या करेगा तम वहाँ, होंगे अगर नन्हें दिए,
रात झिल-मिल कर रही, नभ में सितारों को लिए,
दीन की कुटिया में खाना, खा रही दीपावली।
रौशनी से जगमगाती, भा रही दीपावली।।
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नेह के दीपक सभी को, अब जलाना चाहिए,
प्यार से उल्लास से, उत्सव मनाना चाहिए,
उन्नति का पथ हमें, दिखला रही दीपावली।
रौशनी से जगमगाती, भा रही दीपावली।।
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शायरों-कवियों के मन में उमड़ते उद्गार हैं,
बाँटते हैं लोग अपनों को यहाँ उपहार हैं,
गीत-ग़ज़लों के तराने, गा रही दीपावली।
रौशनी से जगमगाती, भा रही दीपावली।।
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गजानन के साथ, लक्ष्मी-शारदा की वन्दना,
देवताओं के लिए अब, द्वार करना बन्द ना,
मन्त्र को उत्कर्ष के, सिखला रही दीपावली।
रौशनी से जगमगाती, भा रही दीपावली।।
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