दीपों की
दीपावली, देती है सन्देश।
घर-आँगन
के साथ में, रौशन हो परिवेश।।
--
पाकर
बाती-नेह को, लुटा रहा है नूर।
नन्हा
दीपक कर रहा, अन्धकार को दूर।।
--
झिलमिल-झिलमिल
जल रहे, माटी के ये दीप।
देवताओं
के चित्र के, रखना इन्हें समीप।।
--
गौरी और
गणेश के, रहें शारदा साथ।
चरणों में
इनके सदा, रोज झुकाओ माथ।।
--
कभी
विदेशी माल का, करना मत उपयोग।
सदा
स्वदेशी का करो, जीवन में उपभोग।।
--
मेरे
भारतवासियों, ऐसा करो चरित्र।
दौलत अपने
देश की, रखो देश में मित्र।।
--
त्यौहारों
के मूल में, छिपे हुए आदेश।
सुखमय जीवन
के लिए, ऋषियों के सन्देश।।
--
नहीं
अकारण हैं बने, पर्व और त्यौहार।
उत्सव देते
हैं हमें, जीने का आधार।।
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|
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शनिवार, 26 अक्टूबर 2019
दोहे "रौशन हो परिवेश" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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"नहीं अकारण हैं बने, पर्व और त्यौहार।
जवाब देंहटाएंउत्सव देते हैं हमें, जीने का आधार।।"
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२७ -१०-२०१९ ) को "रौशन हो परिवेश" ( चर्चा अंक - ३५०१ ) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
जवाब देंहटाएंकृपया शनिवार को रविवार पढ़े |
नहीं अकारण हैं बने, पर्व और त्यौहार।
जवाब देंहटाएंउत्सव देते हैं हमें, जीने का आधार।।
उत्तम संदेश आदरणीय ! दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं ।