अच्छाई के सामने, गयी बुराई हार।।
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विजयादशमी विजय का, पावन है त्यौहार।
आज झूठ है जीतता, सत्य रहा है हार।।
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रावण के जब बढ़ गये, भू पर अत्याचार।
लंका में जाकर उसे, दिया राम ने मार।।
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तब से पुतले दहन का, बढ़ता गया रिवाज।
मन का रावण आज तक, जला न सका समाज।।
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आज भोग में लिप्त हैं, योगी और महन्त।
भोली जनता को यहाँ, भरमाते हैं सन्त।।
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दावे करते हैं सभी, बदलेंगे तकदीर।
अपनी रोटी सेंकते, राजा और वजीर।।
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मनसा-वाचा-कर्मणा, नहीं सत्य भरपूर।
आम आदमी मजे से, आज बहुत है दूर।।
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सोमवार, 7 अक्तूबर 2019
दोहे "गयी बुराई हार?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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उपासना, कन्यापूजन, यज्ञ- हवन के साथ नवरात्र पर्व का कल समापन हो गया है। आज विजयादशमी मनाने की तैयारी में हमसभी जुटे हुये हैं। परंपरा के अनुरूप रावण के विशालकाय पुतले बनाये जा रहे हैं। आतिशबाजी कर पटाखों के माध्यम से उसे आग के हवाले किया जाएगा। बच्चे ताली बजकर इसका स्वागत करेंगे और बड़े लोगों में से कितने है कि शाम ढलते -ढलते शराब के नशे में झूम बराबर झूम शराबी के नाट्य मंचन में जुट जाएँगे।
जवाब देंहटाएंसवाल यह है कि महापराक्रमी, महाज्ञानी एवं एक अतिसमृद्ध राष्ट्र के शासक रावण का पुतला तो हम हजारों वर्ष से जलाते आ रहे हैं, परंतु अपने हृदय में छिपे बैठे रावण (अहंकार, लोभ, मोह एवं स्वार्थ ) को हम कब मारेंगे। रावण सर्वगुण संपन्न होकर भी दूसरों की संपत्ति के प्रति लोलुपता के कारण समाज में तिरस्कृत हुआ और उसके अहंकार का परिणाम यह रहा कि वह अपने वंश सहित नष्ट हो गया।
वहीं , इस अर्थयुग में हममें से अनेक भी तो यही कर रहे हैं। अवैध तरीके से दूसरों की और राष्ट्रीय सम्पत्ति को अपना समझ हड़प रहे हैं।जिसपर जनता का अधिकार होना चाहिए ,उसपर राजनेता और नौकरशाह कब्जा किये बैठे हैं।भूमाफिया, खनन माफिया और भी न जाने कितने प्रकार के सफेदपोश बाहुबलियों से सरकारी विभाग कंपित है। शासन- प्रशासन में आजादी के बाद से ही मौसेरे भाई का जो खेल शुरू है, वह चरम पर है। शोषित-पीड़ित जनता को न्याय नहीं मिल पा रहा है। सड़के बनते ही टूट जा रही हैं। विकास से जुड़ी कोई भी सामग्री निर्मित हो रहा है, तो उसकी गुणवत्ता की जाँच को लेकर जनप्रतिनिधि कुछ इस तरह से मौन हो जाते हैं कि उन्हें तो कोई घोटला उसमें दिख ही नही रहा हो । तो फिर हे ! ये ज्ञान- ध्यानी संतजन ,किस रावण के वध का उत्सव मनाते हैं।
सरकार कहती है कि हमने अच्छे दिन ला दिये है। आप किसी भी दुकान पर चले जाए और वहाँ काम करने वाले किसी कर्मचारी से पूछे कि जब से नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं उसके वेतन में कितनी वृद्धि हुई है। इस अच्छे दिन का राज आप सभी स्वयं जान जाएँगे। अरे भाई ! अब तो नौकरियाँ कम होती जा रही हैं। खैर, आज सायं रावण का पुतला दहन करते समय हम भी अपने मन को टटोलें , कहीं कोई दशानन हमारे हृदय में तो नहीं छिपा है।
यदि हम राम नहीं हैं, तो रावण के पुतला दहन का जश्न मनाने का भी हमें अधिकार नहीं है।
इन्हीं चंद शब्दों के साथ विजयदशमी पर्व की शुभकामनाएँ।
बहुत सुंदर दोहे
जवाब देंहटाएंवर्तमान समय की नब्ज टटोलते
सादर
सामायिक दोहे सरल सटीक।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएं