माता जी की कृपा से, मिला छन्द का दान।
इसीलिए हूँ बाँटता, मैं दोहों में ज्ञान।१।
--
छोटी-छोटी बात पर, करते यहाँ विवाद।
देते बालक-बालिका, कुल को बहुत विषाद।२।
--
जिसका नहीं इलाज कुछ, ऐसा है ये रोग।
बिना विचारे खुदकुशी, कर लेते हैं लोग।३।
--
करते हैं जो खुदकुशी, वो तो हैं नादान।
कुदरत ने इंसान को, दिया बुद्धि का दान।४।
--
लेना अपने फैसले, सोच–समझ कर आप।
एक जरा सी चूक से, छा जाता सन्ताप।५।
--
जान-बूझ कर मत करो, गलती बारम्बार।
शिक्षा लेकर भूल से, करना भूल सुधार।६।
--
सबके लिए खुले हुए, स्वर्ग-नर्क के द्वार।
कर्मयोनि मिलती नहीं, जग में बारम्बार।७।
--
गघे नहीं खाते जिसे, तम्बाकू वो चीज।
खान-पान की मनुज को, बिल्कुल नहीं तमीज।८।
--
रोग कैंसर का लगे, समझ रहे हैं लोग।
फिर भी करते जा रहे, तम्बाकू उपयोग।९।
--
तम्बाकू को त्याग दो, होगा बदन निरोग।
जीवन में अपनाइए, भोग छोड़कर योग।१०।
--
जग सूना पानी बिना, जल जीवन आधार।
धरती में जल स्रोत का, है सीमित भण्डार।११।
--
जितनी ज्यादा आ रही, आबादी की बाढ़।
उतना ही तपने लगा, जेठ और आषाढ़।१२।
--
घटते ही अब जा रहे, धरती पर से वृक्ष।
सूख गया है इसलिए, वसुन्धरा का वक्ष।१३।
--
लू के झाँपड़ झेल कर, खा सूरज की धूप।
अमलतास का हो गया, सोने जैसा रूप।१४।
--
झूमर जैसे लग रहे, अमलतास के फूल।
छाया देता पथिक को, मौसम के अनुकूल।१५।
--
होता है धन-माल से, कोई नहीं सनाथ।।
सिर पर होना चाहिए, माता जी का हाथ।१६।
--
जिनके सिर पर है नहीं, माँ का प्यारा हाथ।
उन लोगों से पूछिए, कहते किसे अनाथ।१७।
--
उपयोगी पुस्तक नहीं, बस्ते का है भार।
बच्चों को कैसे भला, होगा इनसे प्यार।१८।
--
अभिरुचियाँ समझे बिना, पौध रहे हैं रोप।
नन्हे मन पर शान से, देते कुण्ठा थोप।१९।
--
जितने धरती पर हुए, राजा, रंक-फकीर।
ब्रह्मलीन सबका हुआ, भौतिक तत्व शरीर।२०।
--
पल-पल में है बदलता, काया का ये रूप,
ढल जायेगी एक दिन, रंग-रूप की धूप।२१।
--
ग्रह और नक्षत्र की, चाल रही है वक्र।
आने-जाने का सदा, चलता रहता चक्र।२२।
--
भूतकाल का है नहीं, कुछ भी नहीं गुमान।
अमर समझ कर जी रहा, हर जीवित इंसान।२३।
--
काम करो दिन में सदा, रातों को विश्राम।
संघर्षों से जीत लो, जीवन का संग्राम।२४।
--
नदियाँ-सूरज-चन्द्रमा, देते ये पैगाम।
नित्य-नियम से कीजिए, अपना सारा काम।२५।
--
नहीं मिलेगी हाट में, इन्सानियत-तमीज।
बाँध लीजिए कण्ठ में, कर्मों का ताबीज।२६।
--
जगतनियन्ता का करो, सच्चे मन से ध्यान।
बिना वन्दना के नहीं, मिलता है वरदान।२७।
--
उच्चारण सुधरा नहीं, बना नहीं परिवेश।
अँग्रेजी के जाल में, जकड़ा सारा देश।२८।
--
आज समय की माँग है, दो परिवेश सुधार।
कर्तव्यों के साथ में, मिलें उचित अधिकार।२९।
--
गौमाता भूखी मरे, श्वान खाय मधुपर्क।
समझो ऐसे देश का, बेड़ा बिल्कुल गर्क।३०।
--
चरागाह में बन गये, ऊँचे भव्य मकान।
देख दुर्दशा गाँव की, है किसान हैरान।३१।
--
चोकर-चारा घास के, आसमान पर दाम।
गाय-भैंस को पालना, नहीं सरल है काम।३२।
--
बेच रहे हैं दूध को, अब सारे ग्राणीण।
दही और नवनीत की, आशाएँ हैं क्षीण।३३।
--
कहनेभर को रह गया, अपना देश महान।
गौशालाओं को नहीं, देता कोई दान।३४।
--
माली ही खुद लूटते, अब तो बाग-बहार।
आपाधापी का हुआ, आभासी संसार।३५।
|
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
रविवार, 6 अक्तूबर 2019
दोहे "विविध दोहावली" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ' मयंक')
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि &qu...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
यथार्थ पर आधारित सुंदर दोहे।
जवाब देंहटाएंयथार्थ का अवलोकन करते बहुत सुन्दर दोहे ।
जवाब देंहटाएं