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आई चौदस रूप की, चहक रहे घर द्वार।
कुटिया-महलों में सजे, झालर-बन्दनवार।१।
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सारी दुनिया से अलग, भारत के अंदाज।
दीपक यम के नाम का, जला दीजिए आज।२।
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साफ-सफाई को करो, सुधरेगा परिवेश।
देती नरकचतुर्दशी, सबको यह सन्देश।३।
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जन्मे थे धनवन्तरी, करने को कल्याण।
रहें निरोगी सब मनुज, जब तक तन में प्राण।४।
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भेषज लाये धरा से, धह्वन्तरि भगवान।
वैद्यराज संसार को, देते जीवनदान।५।
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रोग किसी के भी नहीं, आये कभी समीप।
सबके जीवन में जलें, हँसी-खुशी के दीप।६।
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त्यौहारों की शृंखला, पावन है संयोग।
इसीलिए दीपावली, मना रहे सब लोग।७।
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कुटिया-महलों में जलें, जगमग-जगमग दीप।
सरिताओं के रेत में, मोती उगले सीप।८।
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पंचपर्व की शृंखला, लाती हर्ष-उमंग।
प्यार और उपहार के, भारत में हैं रंग।९।
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मौसम शीतल सा हुआ, घर में आये धान।
ऋतुओं के अनुकूल ही, पहनों अब परिधान।१०।
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शुक्रवार, 25 अक्तूबर 2019
दोहे "झालर-बन्दनवार" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२६ -१०-२०१९ ) को "आओ एक दीप जलाएं " ( चर्चा अंक - ३५०० ) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
दीपोत्सव की इतनी सुन्दर काव्यात्मक मंगल-कामना !
जवाब देंहटाएंदीपोत्सव की आप सबको भी बधाई और शुभकामनाएँ !
सुन्दर सामयिक रचना
जवाब देंहटाएं