भावनाओं का अचानक भर गया तालाब है
देशभक्ति का वतन में आ गया सैलाब है
अब खुशी पसरी हुई दीवारों दर चहके हुए
जगमगाते हैं मिनारें सज गयी मेहराब है
मानता लोहा हमारा आज सारा ही जहाँ
अपने हुनर की देश में कारीगरी नायाब है
देखकर ऐसी बुलन्दी बहुत सदमा है वहाँ
दुश्मनों को तो हमारे लग गया जुल्लाब है
सिंध और पख्तून के बदले हुए सुर लग रहे
अब पड़ोसी देश में सुलगा हुआ पंजाब है
दहशतों के साये में जनता जहाँ पर जी रही
भीख में मिलता नहीं संसार में अलकाब है
अब चिरागों में नहीं बाकी बचा कुछ तेल है
रौशनी देती नहीं अब ‘रूप’ की महताब है
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बुधवार, 9 अक्तूबर 2019
ग़ज़ल "‘रूप’ की महताब" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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अति सुंदर !
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10.10.19 को चर्चा मंच पर चर्चा -3484 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद