-- छाँव वही धूप वही, दुल्हिन का रूप वही, उपवन मुस्काया है। नया-गीत आया है।। -- सुबह वही शाम वही, श्याम और राम वही, रबड़-छन्द भाया है। नया-गीत आया है।। -- बिम्ब नये व्यथा वही, पात्र नये कथा वही, माथा चकराया है। नया-गीत आया है।। -- महकी सुगन्ध वही, माटी की गन्ध वही, थाल नव सजाया है। नया-गीत आया है।। -- सूखा आषाढ़ है, भादों में बाढ़ है, कुहरा गहराया है। नया-गीत आया है।। -- आ रहा बसन्त है, शीत का न अन्त है, तिरंगा लहराया है। नया गीत आया है।। -- |
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सोमवार, 18 जनवरी 2021
"नया गीत आया है, माथा चकराया है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक)
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सुन्दर गीत।
जवाब देंहटाएंआ रहा बसन्त है,
जवाब देंहटाएंशीत का न अन्त है,
तिरंगा लहराया है।
नया गीत आया है।।
आदरणीय गणतंत्र दिवस और वसंत के आगमन की आहट पर स्वागतार्थ आपका यह गीत बहुत सुंदर है। साधुवाद 🙏
बहुत सुंदर, रोचक तथा समसामयिक गीत..hamesha की तरह..
जवाब देंहटाएंनए गीत का स्वागत है
जवाब देंहटाएंप्राकृति का सुन्दर गीत ... महक रहा कई रँगों से ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत"नया गीत आया है"
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सृजन ...
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (19-1-21) को "जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि"(चर्चा अंक-3951) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
कामिनी सिन्हा
-वन्दन
जवाब देंहटाएंबिम्ब नये व्यथा वही,
पात्र नये कथा वही,
माथा चकराया है।
नया-गीत आया है।
–सुन्दर सृजन
साधुवाद
सुंदर गीत।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएं