ज़हरीले हैं ताल-तलय्या। दाना-दुनका खाने वाली, कैसे बचे यहाँ गौरय्या? -- अन्न उगाने के लालच में, ज़हर भरी हम खाद लगाते, खाकर जहरीले भोजन को, रोगों को हम पास बुलाते, घटती जाती हैं दुनिया में, अपनी ये प्यारी गौरय्या। दाना-दुनका खाने वाली, कैसे बचे यहाँ गौरय्या?? -- चिड़िया का तो छोटा तन है, छोटे तन में छोटा मन है, विष को नहीं पचा पाती है, इसीलिए तो मर जाती है, सुबह जगाने वाली जग को, अपनी ये प्यारी गौरय्या।। दाना-दुनका खाने वाली, कैसे बचे यहाँ गौरय्या?? -- गिद्धों के अस्तित्व लुप्त हैं, चिड़ियाएँ भी अब विलुप्त हैं, खुशियों में मातम पसरा है, अपनी बंजर हुई धरा है, नहीं दिखाई देती हमको, अपनी ये प्यारी गौरय्या।। दाना-दुनका खाने वाली, कैसे बचे यहाँ गौरय्या?? -- |
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खेतों में विष भरा हुआ है,
जवाब देंहटाएंज़हरीले हैं ताल-तलय्या।
दाना-दुनका खाने वाली,
कैसे बचे यहाँ गौरय्या?
वाकई बहुत गंभीर स्थिति को अपनी रचना के माध्यम से प्रस्तुत किया है आपने। इंसान अपने नन्हें साथियों का दुश्मन बन बैठा है। इस पर सभी को चिंतन करना चाहिए।
बधाई इस श्रेष्ठ रचना के लिए।
सादर नमन 🌹🙏🌹
अन्न उगाने के लालच में,
जवाब देंहटाएंज़हर भरी हम खाद लगाते,
खाकर जहरीले भोजन को,
रोगों को हम पास बुलाते,
घटती जाती हैं दुनिया में,
अपनी ये प्यारी गौरय्या।
पर्यावरण संरक्षण में प्राकृतिक संसाधनों के स्थान पर कृत्रिम संसाधनों के भारी प्रयोग से होने वाले दुष्प्रभावों को उकेरती हृदयस्पर्शी रचना ।
ज़िंदा रहना है तो सुधरना ही होगा
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (12-1-21) को "कैसे बचे यहाँ गौरय्या" (चर्चा अंक-3944) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
कामिनी सिन्हा
बहुत सुंदर और सार्थक कविता।
जवाब देंहटाएंइंसान अब नहीं समझ सका तो कभी नहीं समझ सकेगा
जवाब देंहटाएंवन्दन
मार्मिक रचना
अन्न उगाने के लालच में,
जवाब देंहटाएंज़हर भरी हम खाद लगाते,
खाकर जहरीले भोजन को,
रोगों को हम पास बुलाते,
घटती जाती हैं दुनिया में,
अपनी ये प्यारी गौरय्या।
सही कहा आपने.....बहुत ही सुन्दर सार्थक लाजवाब सृजन।
बहुत सुंदर सार्थक सृजन
जवाब देंहटाएंगौरैया के संरक्षण में जितनी बाधाएं हैं उनका उल्लेख करते हुए बहुत ही सुन्दर कविता लिखी है आपने शास्त्री जी, यथार्थ पूर्ण रचना के लिए हार्दिक शुभकामनाएं..सादर नमन..
जवाब देंहटाएंचिड़िया का तो छोटा तन है,
जवाब देंहटाएंछोटे तन में छोटा मन है,
विष को नहीं पचा पाती है,
इसीलिए तो मर जाती है,
सुबह जगाने वाली जग को,
यथार्थ पूर्ण रचना के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ।
सादर ।
नन्ही मासूम चिड़िया 'गौरैया' के लिए दिल में दर्द जगाती खूबसूरत रचना!
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