अन्धकार ऐसा हुआ, जैसे श्यामल रात।। अकस्मात सरदी बढ़ी, मौसम करे बवाल। पर्वत के भूभाग में, जीना हुआ मुहाल।। पर्वत पर दिनभर हुआ, खूब आज हिमपात। किट-किट बजते दाँत हैं, ठिठुर रहा है गात।। मैदानी भू-भाग पर, सर्दी में बरसात। तेज हवाएँ बाँटती, जाड़े की सौगात।। सूरज नभ में है नहीं, खिली नहीं है धूप। कम्बल चादर ओढ़कर, लोग पी रहे सूप।। धूल-धुन्ध सब धुल गयी, निर्मल है परिवेश। सारे जग से अलग है, अपना भारत देश।। दूध नहीं अच्छा लगे, अच्छी लगती चाय। जाड़ा अब लिखने लगा, नये-नये अध्याय।। |
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रविवार, 3 जनवरी 2021
दोहे "मौसम करे बवाल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत सुंदर 🌻
जवाब देंहटाएंप्रणाम शास्त्री जी, क्या खूब लिखे हैं दोहे सर्दी और ठिठुरन को बयां करते कि ---
जवाब देंहटाएंपर्वत पर दिनभर हुआ, खूब आज हिमपात।
किट-किट बजते दाँत हैं, ठिठुर रहा है गात।।
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मैदानी भू-भाग पर, सर्दी में बरसात।
तेज हवाएँ बाँटती, जाड़े की सौगात।।
मैदानी भू-भाग पर, सर्दी में बरसात।
जवाब देंहटाएंतेज हवाएँ बाँटती, जाड़े की सौगात।।
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सूरज नभ में है नहीं, खिली नहीं है धूप।
कम्बल चादर ओढ़कर, लोग पी रहे सूप।।
अत्यंत सुन्दर सृजन ।
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(०४-०१-२०२१) को 'उम्मीद कायम है'(चर्चा अंक-३९३६ ) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
मंत्रमुग्ध करती प्रभावशाली लेखन व अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर दोहे। बधाई।
जवाब देंहटाएंदूध नहीं अच्छा लगे, अच्छी लगती चाय।
जवाब देंहटाएंजाड़ा अब लिखने लगा, नये-नये अध्याय।।
आदरणीय शास्त्री जी,
बिलकुल दिल की बात बयां कर दी है आपने इस दोहे में 😀
नायाब दोहे हैं सभी... साधुवाद 🙏
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
बहुत खूब, समसामयिक रचना, शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंवाह ! मौसम की जादूगरी को बयान करते सुंदर दोहे
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएं