उपवन मुस्कायेगा!! -- कुहासे की चादर, धरा पर बिछी हुई। नभ ने ढाँप ली है, अमल-धवल रुई।। -- दिवस हैं अभी छोटे, रोशनी मऩ्द है। शीत की मार है, विद्यालय बन्द है।। -- जल रहे हैं अलाव, आँगन चौराहों पर। चहल-पहल कम है, पगदण्डी-राहों पर।। -- सूरज अदृश्य है, पड़ रहा पाला है।। पर्वत ने ओढ़ लिया, बर्फ का दुशाला है।। -- मन में एक आशा है, अब बसन्त आयेगा! खिल जायेंगे नव सुमन, उपवन मुस्कायेगा!! -- |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
रविवार, 31 जनवरी 2021
कविता "अब बसन्त आयेगा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि ...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएं"मन में एक आशा है,
जवाब देंहटाएंअब बसन्त आयेगा!"
.
बहुत अच्छी अभिलाषा सर!
मन में एक आशा है,
जवाब देंहटाएंअब बसन्त आयेगा!
खिल जायेंगे नव सुमन,
उपवन मुस्कायेगा!!
आमीन !!!!!
सुंदर, आशावादी गीत...
आदरणीय अनंत शुभकामनाओं सहित
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
खिल जायेंगे नव सुमन, उपवन मुस्कायेगा; वह समय भी आएगा
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 01 फ़रवरी 2021 को 'अब बसन्त आएगा' (चर्चा अंक 3964) पर भी होगी।--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
बहुत सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंवाह!
हटाएंसुंदर,भावपूर्ण,उत्कृष्ट रचना माननीय।
सादर नमन।
शीतांत में आहट सुनाई देने लगती है - दूर नहीं है अब वसंत.
जवाब देंहटाएंवाह!बहुत ही सुंदर सर।
जवाब देंहटाएंसादर
वाह! बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंपर्वतों के दुशाले अब पिघलने लगे हैं,कोहरे भी तो छंटने लगे हैं
सच अब बसंत आयेगा।
अप्रतिम रचना।
मुग्ध करती रचना।
जवाब देंहटाएंसूरज अदृश्य है,
जवाब देंहटाएंपड़ रहा पाला है।।
पर्वत ने ओढ़ लिया,
बर्फ का दुशाला है।।
वाह! अत्यंत सुंदर उपमाएं...
सादर नमन आदरणीय 🙏🌹🙏
- डॉ शरद सिंह