घूमते शब्द कानन में उन्मुक्त से, जान पाये नहीं प्रीत का व्याकरण। बस दिशाहीन सी चल रही लेखिनी, कण्टकाकीर्ण पथ नापते हैं चरण।। -- ताल बनती नहीं, राग कैसे सजे, बेसुरे हो गये साज-संगीत हैं। ढाई-आखर बिना है अधूरी ग़ज़ल, प्यार के बिन अधूरे प्रणयगीत हैं। नेह के स्रोत सूखे हुए हैं सभी, खो गये हैं सभी आजकल आचरण। कण्टकाकीर्ण पथ नापते हैं चरण।। -- सूदखोरों की आबाद हैं बस्तियाँ, आज गिरवीं पड़ा है तिजोरी में दिल। बिक रहा बोतलों में जहाँ पेयजल, आचमन के लिए है कहाँ अब सलिल। खोखले छन्द बोलेंगे कैसे व्यथा, स्वार्थ के वास्ते आज पोषण-भरण। कण्टकाकीर्ण पथ नापते हैं चरण।। -- चारणों के नगर में, सुख़नवर कहाँ, जिन्दग़ी चल रही भेड़ की चाल से। कौन तूती के सुर को सुनेगा यहाँ, मढ़ रहे ढपलियाँ, बाल की खाल से। लाज कैसे बचे द्रोपदी की यहाँ, कंस ओढ़े हुए हैं कृष्ण का आवरण, कण्टकाकीर्ण पथ नापते हैं चरण।। -- |
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गुरुवार, 7 जनवरी 2021
गीत "प्यार के बिन अधूरे प्रणयगीत हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 08-01-2021) को "आम सा ये आदमी जो अड़ गया." (चर्चा अंक- 3940) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
चारणों के नगर में, सुख़नवर कहाँ,
जवाब देंहटाएंजिन्दग़ी चल रही भेड़ की चाल से।
कौन तूती के सुर को सुनेगा यहाँ,
मढ़ रहे ढपलियाँ, बाल की खाल से।
सचमुच यही हो रहा है। यथार्थ का चित्रण इस गीत में जिस बख़ूबी से आपने किया है वह क़ाबिले तारीफ़ है आदरणीय।
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
बेहतरीन गीत।
जवाब देंहटाएंवाह ! बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंयथार्थ पूर्ण एवं सारगर्भित छंदों से सजी सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएंसूदखोरों की आबाद हैं बस्तियाँ,
जवाब देंहटाएंआज गिरवीं पड़ा है तिजोरी में दिल।
बिक रहा बोतलों में जहाँ पेयजल,
आचमन के लिए है कहाँ अब सलिल।
आज के हालात को बखूबी चित्रित करती श्रेष्ठ रचना के लिए सादर नमन आदरणीय 🌹🙏🌹