चार उँगलियाँ और
अँगूठा,
मिलकर बन जाता है
घूँसा।
सुमन इकट्ठे रहें
जहाँ पर,
वो कहलाती है
मंजूषा।।
रंग-बिरंगे फूल
जहाँ हो,
वही चमन अच्छा लगता
है।
ममता-प्यार-दुलार
करे जो,
वो साथी सच्चा लगता
है।।
जन्मभूमि का मान
बढ़ाये,
वो ही तो सपूत
कहलाता।
खाये यहाँ का-गाये
वहाँ का,
माता का वो दूध
लजाता।।
फूलों की रक्षा
करने को,
काँटे होते हैं
उपवन में
इसीलिए तो तिरछी
उँगली,
करनी पड़ती है जीवन
में।
टेढ़ी उँगली
मक्कारी की,
मजबूरी में ही अपनाओ।
सीधी उँगली से
इंगित कर,
सबको सीधी राह
बताओ।।
|
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मंगलवार, 26 अगस्त 2014
"सबको सीधी राह बताओ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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शिक्षाप्रद रचना !
जवाब देंहटाएंधर्म संसद में हंगामा
क्या कहते हैं ये सपने ?
बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंसीधी अंगुली दिशा निर्देशित करती है.
कभी कभार चेतावनी भी दे जाती है.
बहुत सुंदर ।
जवाब देंहटाएंरविकर जी रचना चोरी करके ले जा रहे हैं चर्चा के लिये बच के :)
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवार के लिए चुरा ली गई है- चर्चा मंच पर ।। आइये हमें खरी खोटी सुनाइए --
हटाएंटेढ़ी उँगली मक्कारी की,
जवाब देंहटाएंमजबूरी में ही अपनाओ।
सीधी उँगली से इंगित कर,
सबको सीधी राह बताओ।।
बेहद सशक्त पंक्तियाँ शास्त्रीजी की। बढ़िया चर्चा मंच।
बहुत ख़ूब
जवाब देंहटाएंshikshaprad kavita .. bahut badhiya
जवाब देंहटाएं