कुहरे
ने सूरज ढका,
थर-थर काँपे देह।
कहीं
बर्फबारी हुई, कहीं बरसता मेह।१।
--
कल
तक छोटे वस्त्र थे, फैशन की थी होड़।
लेकिन
सर्दी में सभी, रहे शाल को ओढ़।२।
--
ऊनी
कपड़े पहनकर,
मिलता है आराम।
बच्चे-बूढ़े
कर रहे,
बिस्तर में विश्राम।३।
--
ख़ास
मजे को लूटते, व्याकुल होते आम।
गाजर
का हलवा यही,
खाते सुबहो-शाम।३।
--
आज
घरेलू गैस के, बढ़े हुए हैं भाव।
लकड़ी
मिलती हैं नहीं, कैसे जले अलाव।४।
--
हाड़
कँपाते शीत से, ठिठुरा देश-समाज।
गीजर-हीटर
क्या करें,
बिन बिजली के आज।५।
--
मँहगा
आलू-प्याज है, चावल-आटा-दाल।
निर्धन
का तो हो गया, जीना आज मुहाल।६।
--
विद्वानों
की जेब में,
कौड़ी नहीं छदाम।
कंगाली
में हो रहा,
परमारथ का काम।७।
--
कविता
लिखकर हो गया, जीवन मटियामेट।
दोहे
लिखने से नहीं, भरता पापी पेट।८।
--
अब
थमना ही चाहिए, अस्त्र-शस्त्र का खेल।
बैर-भाव
मिट जाये तो, हो
आपस में मेल।९।
--
विद्वानों
का काव्य औ,
सन्तों का उपदेश।
आपस
में मिल कर रहें, सबका ये सन्देश।१०।
|
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गुरुवार, 18 दिसंबर 2014
"दस दोहे-हो आपस में मेल" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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bahut sundar dohe
जवाब देंहटाएंbahut sundar dohe
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर एवं सटीक दोहे.
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक
जवाब देंहटाएंकविता लिखकर हो गया, जीवन मटियामेट।
दोहे लिखने से नहीं, भरता पापी पेट।८।
खट्टे-मिठ्ठे सुंदर दोहे.
जवाब देंहटाएंआपस में मिल कर रहें, सबका ये सन्देश।१०।
जवाब देंहटाएंसंदेश सुन्दर है लेकिन अति भी सहनीय नहीं होनी चाहिये - नीति कहती है शठं शाठ्यं समाचरेत्.
कविता लिखकर हो गया, जीवन मटियामेट।
जवाब देंहटाएंदोहे लिखने से नहीं, भरता पापी पेट।
.सच पेट की खातिर कुछ न कुछ करना ही पड़ता है और अगर पेट भरा न हो तो ठण्ड भी बहुत लगती है ..
ठण्ड के साथ चिंतन के बिंदु ...