असली
का युग अब गया, नकली का सम्मान।
छद्मवेश
का आजकल, दुनिया में है मान।१।
--
महिला
होता मैं अगर, देते सब उपहार।
खुश
करने को सब मुझे, करते प्यार-अपार।२।
--
जी
करता है मैं अभी, नवखाता लूँ खोल।
लेकिन
मन भयभीत है, खुल ना जाये पोल।३।
--
चार
लाइनों में मिलें, लाइक एक हजार।
टिप्पणियों
की कर रहे, सब मजनूँ बौछार।४।
--
नर
होने पर आज तो, मुझको होता रश्क।
किस्मत
अपनी देखकर, बहा रहा हूँ अश्क।५।
--
नारी
के है सामने, नर का निर्बल पक्ष।
आज “रूप”
के सदन में, पानी भरते दक्ष।६।
--
लेकिन मेरे
हृदय में, फिर भी है सन्तोष।
हरदम
रहती कामना, लेखन हो निर्दोष।७।
--
लिखकर
मैं तुकबन्दियाँ, खुद ही कहता वाह।
इसीलिए
तो है नहीं, टिप्पणियों की चाह।८।
--
आमन्त्रण
देते मुझे, हिन्दी के ये छन्द।
छन्दों
में लिखकर मुझे, मिलता है आनन्द।९।
|
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सोमवार, 8 दिसंबर 2014
"दोहे-नर का निर्बल पक्ष" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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क्या सटीक बात कही है...बहुत सुन्दर और सार्थक दोहे...
जवाब देंहटाएंबढ़िया वाह :)
जवाब देंहटाएंkya baat
जवाब देंहटाएंसर, कटु यथार्थ। अद्भुत कविता
जवाब देंहटाएंलेकिन मेरे हृदय में, फिर भी है सन्तोष।
जवाब देंहटाएंहरदम रहती कामना, लेखन हो निर्दोष
...हमें अपने पर विश्वास रखना सबसे जरुरी है ....
असली नकली का भेद ज्यादा दिन नहीं चल पाता है......