मन में
जब तक आपके, होगा शब्द-अभाव।
दोहे
में तब तक नहीं, होंगे पुलकित भाव।१।
--
गति-यति,
सुर-लय-ताल सब, हैं दोहे के अंग।
कविता
रचने के लिए, इनको रखना संग।२।
--
दोहा
वाचन में अगर, आता हो व्यवधान।
कम-ज्यादा
है मात्रा, गिन लेना श्रीमान।३।
--
लघु में
लगता है समय, एक-गुना श्रीमान।
अगर दो-गुना
लग रहा, गुरू उसे लो जान।४।
--
दोहे
में तो गणों का, होता बहुत महत्व।
गण ही
तो इस छन्द के, हैं आवश्यक तत्व।५।
--
तेरह
ग्यारह से बना, दोहा छन्द प्रसिद्ध।
विषम
चरण के अन्त में, होता जगण निषिद्ध।६।
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कठिन
नहीं है दोस्तों, दोहे का विन्यास।
इसको रचने
के लिए, करो सतत् अभ्यास।७।
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सोमवार, 22 दिसंबर 2014
"दोहे-दोहों का मर्म..." (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत सुन्दर .
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर दोहे ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर दोहे
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