जेठ लग रहा है चौमासा
लू-गरमी के मन में कुंठा
आम-नीम में भरी निराशा
चौपट है किसान की मेहनत
मन में छायी घोर हताशा
लगता है सावन-भादों में
चातक रह जायेगा प्यासा
चक्रवात-भूकम्प लीलते
बदली जीवन की परिभाषा
कल क्या होगा नहीं जानते
मन में भरी हुई जिज्ञासा
पल-पल “रूप” बदलता मौसम
कैसे पूरी हो अभिलाषा
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रविवार, 3 मई 2015
हिन्दी ग़ज़लिका "जेठ लग रहा है चौमासा" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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