सीखो सबक विनाश से, समझो कुछ संकेत।
मुखरित होकर कह रहे,
बंजर होते खेत।१।
सोच-समझकर खोलना, अपनी वाणी मित्र।
जिह्वा देती है बता,
अच्छा-बुरा चरित्र।२।
सपनों की सुन्दर फसल, अरमानों का बीज।
किन्तु हकीकत में नहीं, मिलती ऐसी चीज।३।
कहीं किसी बाजार में, बिकती नहीं तमीज।
प्यार और सौहार्द्र का, घर में बोना बीज।४।
सुबह हुई अब तो उठो,
खोलो मन के द्वार।
करके पूजा-जाप को, लो
बुहार घर-बार।५।
जिसको सर्वसमाज का, मिला हुआ हो साथ।
लोकतन्त्र के समर में,
विजय उसी के हाथ।६।
प्यार भरे सब गीत हों, प्यारा हो संगीत।
मिल जायें बिछुड़े हुए,
सबको उनके मीत।७।
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गुरुवार, 16 अगस्त 2018
दोहे "बंजर होते खेत" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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सीखो सबक विनाश से, समझो कुछ संकेत।
जवाब देंहटाएंमुखरित होकर कह रहे, बंजर होते खेत।१।
सोच-समझकर खोलना, अपनी वाणी मित्र।
जिह्वा देती है बता, अच्छा-बुरा चरित्र।२।
दोहों में बसने लगा एक खटीमा गाँव ,
खड़ा हुआ वटवृक्ष एक शास्त्री जी की छाँव।
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