काव्य का
गुलदस्ता है सृजन कुंज
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
पेशे से अंग्रेजी की एक शिक्षिका
जो कामकाजी महिला के साथ-साथ एक कुशल गृहणी, एक सम्वेदनशील पुत्री, मन्दालसा
जैसी माता, धर्मपरायण पत्नी और प्रेरक मित्र भी है,
उस प्रतिभाशालिनी कवयित्री का नाम है राधा तिवारी उर्फ राधेगोपाल।
जिनकी साहित्य निष्ठा देखकर मुझे प्रकृति के सुकुमार चितेरे श्री सुमित्रनन्दन
पन्त जी की यह पंक्तियाँ याद आ जाती हैं-
‘‘वियोगी होगा पहला कवि,
हृदय से उपजा होगा गान।
निकल कर नयनों से चुपचाप,
बही होगी कविता अनजान।।’’
आमतौर पर देखने में आया है
कि जो महिलाएँ नौकरी पेशा हैं, उनमें
से ज्यादातर चौके-चूल्हे और अपने कार्यालय तक ही सीमित हो जाती हैं। परन्तु राधा
तिवारी उर्फ राधेगोपाल ने इस मिथक को झुठलाते हुए अनवरत साहित्यसृजन करना अपनी
आदत बना ली है। सोते-जागते, रसोई-कार्यालय, विद्यालय में अपने पास एक डायरी और पेन रखना इनकी आदत बन गयी है और अपनी
धुन में सवार होकर विभिन्न भावों को अपनी काव्यकला से अभिसिंचित करती रहती हैं।
मुझे इनके काव्य संकलन ‘सृजन कुंज’ की पाण्डुलिपि देखने का
सौभाग्य प्राप्त हुआ। पुस्तक के नाम और आवरण ने मुझे प्रभावित किया और मैं इसको
पढ़ने के लिए स्वयं को रोक न सका। जबकि इससे पूर्व में प्राप्त हुई कई मित्रों की
कृतियाँ मेरे पास दो-शब्द लिखने के लिए कतार में हैं।
राधा तिवारी उर्फ राधेगोपाल
ने अपने काव्य संग्रह ‘सृजन कुंज’
में यह सिद्ध कर दिया है कि वह न केवल एक कवयित्री है बल्कि
शब्दों की कुशल चितेरी भी हैं। काव्य संग्रह का प्रारम्भ उन्होंने माँ शारदा की
वन्दना से किया है। जिसके शब्द वास्तव में बहुत हृदय ग्राही हैं-
‘‘ज्ञान के इन चक्षुओं में
छा रहा अँधियार भारी।
वन्दना स्वीकार कर लो
शारदे माता हमारी।।
माँ हमारी लेखनी को
शब्द का उपहार दे दो।
कर सकूँ आराधना मैं,
माँ मुझे अधिकार दे दो।।
चरण रज को चाहती है,
राधिका दासी तुम्हारी।’’
कवयित्री ने
अपने काव्यसंग्रह की मंजुलमाला में जिन रचनाओं के मोतियों को पिरोया है उनमें
माँ, पापा, मिट्ठू, चन्दामामा, कान्हा, मेरी
गुड़िया, बादल, अपना देश, हेलमेट, सहारा, बचपन, चिड़िया,
जोकर, रेल का इंजन आदि बालसुलभ संवेदनाएँ तो
हैं ही साथ ही दूसरी ओर रोजमर्रा की गतिविधियों पिछौड़ा, निन्दिया,
आसमां- कवि और कविता, धर्म, परिन्दे, सम्मान, जीवन,
धरा का रंग, प्रतिभा, कोरा
कागज, सुख-दुख, सोच, भूकम्प, कोहरा और सूरज आदि प्राकृतिक उपादानों और
कुछ महत्वपूर्ण ग़ज़लों को भी अपने काव्य संग्रह में स्थान दिया है। इसके अतिरिक्त
प्रेम के विभिन्न रूपों को भी उनकी रचनाओं में विस्तार मिला है-
‘‘मैं दिल के आईने में,
तुम को निहारती हूँ ।
ख्वाबों में जगते-सोते,
तुमको पुकारती हूँ ।
सपनों में मेरे आकर,
कुछ राज़ तो बताओ।
मेरे दिल को छू जो जाये,
वह साज तो बजाओ।’’
‘सृजन कुंज’
काव्यसंग्रह में कवयित्री ने माता के प्रति व्यथा को चिमटे के
माध्यम से अपने शब्द देते हुए लिखा है-
‘‘माँ जब तू रोटी सेंकेगी
तब मैं चिमटा बन जाऊँगा
कोमल कोमल हाथ तेरे माँ
जलने से स्वयं बचाऊँगा’’
जहाँ तक मुझे
ज्ञात है कवयित्री ने बहुत सारी छन्दबद्ध रचनाओं के साथ-साथ भावों को प्रमुखता
देते हुए सोद्देश्य लेखन के भाव को अपनी रचनाओं में हमेशा जिन्दा रखा है-
‘‘मानव जीवन है उपहार।
नहीं मिलेगा बारम्बार।।
डाली से जो टूट गया,
वह फूल नहीं खिलता है।
एक बार जो रूठ गया,
वो मीत नहीं मिलता है।।’’
समाज की मनोस्थति पर भी करीने के साथ कवयित्री ने अपनी सशक्त लेखनी को
चलाया है-
‘‘तुम हो मेरे सच्चे साथी
आओ बैठो दुख साथ मेरे
सुख मेहमां है पल दो पल का
क्या बैठेगा पास मेरे’’
दैविक आपदा
भूकम्प को लेकर कवयित्री ने लिखा है-
‘‘भूकंप ने आकर के धरती हिलाई।
बच्चों को लेकर माँ बाहर निकल आई।।
फेसबुक-व्हाट्सप चौकन्ने हो गये ।
लोग विध्वंस के डर में खो गये।।
तार हिला पंखा हिला टूटा विश्वास।
हिला खूँटी पर टँगा शान्त लिबास।।’’
छन्दबद्ध कृति के काव्यसौष्ठव
का अपना अनूठा ही स्थान होता है जिसका निर्वहन कवयित्री ने कुशलता के साथ किया
है-
‘‘प्रणय की तस्बीर हो खिलता गुलाब हो
जो सबको बाँटे रौशनी वो आफताब हो
आता है दबे पाँव ही जो ख्वाब में सदा
शीतल सी चाँदनी तुम्हीं तो माहताब हो’’
बाल रचनाओं को
कवयित्री ने बच्चों की भावनाओं के सागर में सराबोर होकर लिखा है। देखिए उनकी कुछ
बाल रचनाओं को-
मिट्ठू की बोली प्यारी
‘‘मैंने इक प्यारा सा तोता,
देखा आज बगीचे में।
मिट्ठू-मिट्ठू बोल रहा था,
तोता खूब दलीचे में।।’’
चन्दा मामा
‘‘चंदा मामा कितना प्यारा।
यह है सारे जग से न्यारा।।
मम्मी का यह भाई कहाता।
इसीलिए मामा कहलाता।।’’
‘सृजन कुंज’
काव्यसंकलन को पढ़कर मैंने अनुभव किया है कि कवयित्री राधा तिवारी
ने बाल सुलभ रचनाओं के साथ भाषिक सौन्दर्य के अतिरिक्त कविता और शृंगार की सभी
विशेषताओं का संग-साथ लेकर जो निर्वहन किया है वह अत्यन्त सराहनीय है।
मुझे पूरा
विश्वास है कि पाठक ‘सृजन कुंज’ काव्य
संकलन को पढ़कर अवश्य लाभान्वित होंगे और यह कृति समीक्षकों की दृष्टि से भी
उपादेय सिद्ध होगी।
हार्दिक
शुभकामनाओं के साथ!
दिनांकः 18-03-2018
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’
कवि एवं
साहित्यकार
टनकपुर-रोड, खटीमा
जिला-ऊधमसिंहनगर
(उत्तराखण्ड) 262308
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बुधवार, 29 अगस्त 2018
"सृजन कुंज की भूमिका" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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wow...bahut khoob...you have explained so well..many congratulations.
जवाब देंहटाएंDo visit my blog https://successayurveda.blogspot.com/
सृजन कुंज’
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर sir
हमको अवगत करने के लिए धन्यवाद्
सच घर और बाहर की जिम्मेदारी के साथ लेखन एक चुनौती है
जवाब देंहटाएंसृजन कुंज की बहुत अच्छी समीक्षा प्रस्तुति
राधा तिवारी जी को हार्दिक बधाई !!
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 30.8.18 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3079 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद
Abhaar sabhi ka
जवाब देंहटाएं