मौसम लेकर आ गया, वासन्ती उपहार।
जीवन में बहने लगी, मन्द-सुगन्ध बयार।।
सरदी अब कम हो गयी, बढ़ा धरा का ताप।
उपवन में करने लगे, प्रेमी
मेल-मिलाप।।
खुश हो करके खिल रहे, सेमल और कपास।
लोगों को होने लगा, वासन्ती आभास।।
सरसो फूली खेत में, गया
कुहासा हार।
जीवन में बहने लगी, मन्द-सुगन्ध बयार।।
बया बनाने लग गया, फिर से भव्य कुटीर।
नदियों में बहने लगा, पावन निर्मल
नीर।।
पीपल गदराया हुआ, बौराया है आम।
कुदरत के बदले हुए, लगते अब आयाम।।
कोयल और कबूतरी, तन
को रहे सँवार।
जीवन में बहने लगी, मन्द-सुगन्ध बयार।।
खग-मृग नर-वानर सभी, मना
रहे सुख-चैन।
अपने-अपने मीत से, लड़ा रहे हैं नैन।।
धरती पर पसरी हुई, निखरी-निखरी धूप।
जन-जीवन का आज तो, बदल रहा है रूप।।
भोजन करके पेटभर, लेते लोग डकार।
जीवन में बहने लगी, मन्द-सुगन्ध बयार।।
कुसुमों को निज अंक में, पाल रहे हैं शूल।
गुलशन में खिलने लगे, रंग-बिरंगे फूल।।
सरकंडे के नीड़ में, बंजारों का वास।
चारो और चहक रहा, वासन्ती मधुमास।।
सरकंडे के नीड़ में, बंजारों का वास।।
हरा-भरा फिर से हुआ, उजड़ा हुआ दयार।
जीवन में बहने लगी, मन्द-सुगन्ध बयार।।
|
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
शुक्रवार, 31 जनवरी 2020
दोहागीत "मन्द-सुगन्ध बयार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
गुरुवार, 30 जनवरी 2020
गीत "आया बसन्त" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
आ गईं बहारें मधुवन में,
गुलशन में कलियाँ चहक उठीं,
पुष्पित बगिया भी महक उठी,
अनुरक्त हुआ मन का आँगन।
आया बसन्त, आया बसन्त।१।
--
कोयल ने गाया मधुर गान,
चिड़ियों ने छाया नववितान,
यौवन ने ली है अँगड़ाई,
सूखी शाखा भी गदराई,
बौराये आम, नीम-जामुन।
आया बसन्त, आया बसन्त।२।
--
हिम हटा रहीं पर्वतमाला,
तम घटा रही रवि की ज्वाला,
गूँजे हर-हर, बम-बम के स्वर,
दस्तक देता होली का ज्वर,
सुखदायी बहने लगा पवन।
आया बसन्त, आया बसन्त।३।
--
खेतों में पीले फूल खिले,
भँवरे रस पीते हुए मिले,
मधुमक्खी शहद समेट रही,
सुन्दर तितली भर पेट रही,
निखरा-निखरा है नील गगन।
आया बसन्त, आया बसन्त।४।
--
|
बुधवार, 29 जनवरी 2020
वन्दना "मैं ज्ञान माँगता हूँ" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
--
मैं हूँ निपट भिखारी, कुछ दान माँगता हूँ।
झोली पसारकर माँ, मैं ज्ञान माँगता हूँ।।
--
दुनिया की भीड़ से मैं,
बच करके चल रहा हूँ,
माँ तेरे रजकणों को,
माथे पे मल रहा हूँ,
निष्प्राण अक्षरों में, मैं प्राण माँगता हूँ।
झोली पसारकर माँ, मैं ज्ञान माँगता हूँ।।
--
अज्ञान का अन्धेरा,
छँट जाये मन से मेरे,
विज्ञान का सवेरा,
हो जाये मन में मेरे,
मैं शीश को नवाकर, प्रज्ञान माँगता हूँ।
झोली पसारकर माँ, मैं ज्ञान माँगता हूँ।।
--
तुलसी, कबीर जैसी,
मैं भक्ति माँगता हूँ,
मीरा व सूर सी माँ!
आसक्ति माँगता हूँ,
छन्दों का आपसे माँ, वरदान माँगता हूँ।
झोली पसारकर माँ, मैं ज्ञान माँगता हूँ।।
--
|
मंगलवार, 28 जनवरी 2020
वन्दना "शारदे माँ! तुम्हें कर रहा हूँ नमन" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
शारदे माँ! तुम्हें कर रहा हूँ नमन।।
--
घोर तम है भरा आज परिवेश में,
सभ्यता सो गई आज तो देश में,
हो रहा है सुरा से यहाँ आचमन।
शारदे माँ! तुम्हें कर रहा हूँ नमन।।
--
दो सुमेधा मुझे मैं तो अनजान हूँ,
माँगता काव्य-छन्दों का वरदान हूँ,
चाहता हूँ वतन में सदा हो अमन।
शारदे माँ! तुम्हें कर रहा हूँ नमन।।
--
वन्दना आपकी नित्य मैं कर रहा,
शीश चरणों में, मैं आपके धर रहा,
आपके दर्शनों के हैं प्यासे नयन।
शारदे माँ! तुम्हें कर रहा हूँ नमन।।
--
तान वीणा की माता सुना दीजिए,
मेरे मन को सुमन अब बना दीजिए,
हो हमेशा चहकता-महकता चमन।
शारदे माँ! तुम्हें कर रहा हूँ नमन।।
--
|
सोमवार, 27 जनवरी 2020
दोहे "कहाँ रहा जनतन्त्र" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
--
नहीं भूलना चाहिए, वीरों का बलिदान।
सीमाओं पर देश की, देते जान जवान।।
--
उनकी शौर्य कहानियाँ, गाते धरती-व्योम।
आजादी के यजन में, किया जिन्होंने होम।।
--
आज हमारे देश में, सबसे दुखी किसान।
फाँसी खा कर मर रहे, धरती के भगवान।।
--
अमर शहीदों का जहाँ, होता हो अपमान।
सिर्फ कागजों में बना, अपना देश महान।।
--
देश भक्ति का हो रहा, पग-पग पर अवसान।
भगत सिंह को आज भी, नहीं मिला वो मान।।
--
कितने ही दल हैं यहाँ, परिवारों से युक्त।
होते हैं बारम्बार हैं, नेता वही नियुक्त।।
--
लोकतान्त्रिक देश में, कहाँ रहा जनतन्त्र।
गलियारों में गूँजते, जाति-धर्म के मन्त्र।।
--
राम और रहमान को, भुना रहे हैं लोग।
जनता दुष्परिणाम को, आज रही है भोग।।
--
वर्तमान है लिख रहा, अब अपना इतिहास।
आम आज भी आम है, खास आज भी खास।।
--
|
रविवार, 26 जनवरी 2020
गीत "गणतन्त्र दिवस" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
|
शनिवार, 25 जनवरी 2020
दोहे "जाति-धर्म के मन्त्र" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
--
नहीं भूलना चाहिए, वीरों का बलिदान।
सीमाओं पर देश की, देते जान जवान।।
--
उनकी शौर्य कहानियाँ, गाते धरती-व्योम।
आजादी के यजन में, किया जिन्होंने होम।।
--
आज हमारे देश में, सबसे दुखी किसान।
फाँसी खा कर मर रहे, धरती के भगवान।।
--
अमर शहीदों का जहाँ, होता हो अपमान।
सिर्फ कागजों में बना, अपना देश महान।।
--
देश भक्ति का हो रहा, पग-पग पर अवसान।
भगत सिंह को आज भी, नहीं मिला वो मान।।
--
कितने ही दल हैं यहाँ, परिवारों से युक्त।
होते हैं बारम्बार हैं, नेता वही नियुक्त।।
--
लोकतान्त्रिक देश में, कहाँ रहा जनतन्त्र।
गलियारों में गूँजते, जाति-धर्म के मन्त्र।।
--
राम और रहमान को, भुना रहे हैं लोग।
जनता दुष्परिणाम को, आज रही है भोग।।
--
वर्तमान है लिख रहा, अब अपना इतिहास।
आम आज भी आम है, खास आज भी खास।।
--
|
शुक्रवार, 24 जनवरी 2020
गीत "मनाएँ कैसे हम गणतन्त्र" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
|
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि ...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...