हिमगिरि के शिखरों से चलकर,
कलकल-छलछल, बहती अविरल,
कुदरत का उपहार कहाँ है?
निर्मल गंगा धार कहाँ है??
मैदानों पर रूप निखारा,
दर्पण जैसी निर्मल धारा,
अर्पण-तर्पण करने वाली,
सरल-विरल चंचल-मतवाली,
पौधों में भरती हरियाली,
अमल-धवल गुंजार कहाँ है?
निर्मल गंगा धार कहाँ है??
भवसागर से पार लगाती,
कष्ट-क्लेश को दूर भगाती,
जो अपने पुरखों की थाती,
उसका दुख अब कौन हरेगा?
गंगा निर्मल कौन करेगा?
जल का स्रोत अपार कहाँ है?
निर्मल गंगा धार कहाँ है??
शंकर ने सिर पर बैठाया,
धरती ने आँचल फैलाया,
तब गंगा ने पाँव बढ़ाया,
जन-जन ने आनन्द मनाया,
ऋषि-मुनियों ने शीश नवाया,
शिव का वो संसार कहाँ है?
निर्मल गंगा धार कहाँ है??
आज प्रदूषण इसमें भारी,
नष्ट हुई पावनता सारी,
आहत हैं सारे नर-नारी,
जिसका करते पूजन-वन्दन,
जिसका करते थे अभिनन्दन,
कुदरत का शृंगार कहाँ है?
निर्मल गंगा धार कहाँ है??
कलश कहाँ है अब अमृत का,
भटक रहा है पथिक सुपथ का,
पहिया जाम हुआ है रथ का,
कभी धाम था सदाचार का,
वहाँ गरल है अनाचार का,
हर-हर का हरद्वार कहाँ है?
निर्मल गंगा धार कहाँ है??
कलियुग कितना हुआ सबल है,
मानव के कर्मों का फल है,
तप और त्याग हुआ निष्फल है,
सुरभित-पुष्पित नहीं चमन है,
वीराना अपना उपवन है,
भागीरथ का प्यार कहाँ है?
निर्मल गंगा धार कहाँ है??
बिगड़ा नहीं अभी कुछ ज्यादा,
मन में हो यदि ठोस इरादा,
पथ बिल्कुल है सीधा-सादा,
व्रत लो गंगा साफ करेंगे,
नदियाँ दूषित नहीं करेंगे,
ऐसा आज विचार कहाँ है।
निर्मल गंगा धार कहाँ है??
|
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
शनिवार, 18 जनवरी 2020
गीत "निर्मल गंगा धार कहाँ है" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि ...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
बेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(२० -०१-२०२० ) को "बेनाम रिश्ते "(चर्चा अंक -३५८६) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
कंक्रीट के इस जंगल में, इंसान भी हैवान हो गया है.
जवाब देंहटाएंमाँ गंगे, नालों में तब्दील हो गयी हैं. आज उनमें स्नान करने से हमारे पाप धुलते नहीं, बल्कि हमको एक से एक भयंकर रोग लग जाते हैं.
गंगा की निर्मल धार अब तो सिर्फ़ कविताओं में शेष है.
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गीत
सादर