"संस्मरण-बाबा नागार्जुन"
स्कूटर से यात्रा करते हुए डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक', बाबा नागार्जुन और वाचस्पति शर्मा।
बाबा
नागार्जुन की तो इतनी स्मृतियाँ मेरे मन व मस्तिष्क में भरी पड़ी हैं कि एक
संस्मरण लिखता हूँ तो दूसरा याद हो आता है। मेरे व वाचस्पति जी (तत्कालीन हिन्दी विभागाध्यक्ष-राजकीय महाविद्यालय,
खटीमा) के एक चाटुकार मित्र थे। जो वैद्य जी के नाम से मशहूर थे। वे अपने नाम के
आगे ‘निराश’ लिखते थे। अच्छे शायर माने जाते थे।
आजकल तो दिवंगत हैं। परन्तु धोखा-धड़ी और झूठ
का व्यापार इतनी सफाई व सहजता से करते थे कि पहली बार में तो कितना ही चतुर
व्यक्ति क्यों न हो उनके जाल में फँस ही जाता था।
उन दिनों बाबा नागार्जुन का प्रवास खटीमा में
ही था। यहाँ डिग्री कॉलेज में वाचस्पति जी हिन्दी के प्राध्यापक थे। इसलिए
विभिन्न कालेजों की हिन्दी विषय की कापी उनके पास मूल्यांकन के लिए आती थीं। उन
दिनों चाँदपुर के कालेज की कापियाँ उनके पास आयी हुईं थी।
तभी की बात है कि दिन में लगभग 2 बजे एक सज्जन वाचस्पति जी का घर पूछ रहे थे।
उन्हें वैद्य जी टकरा गये और राजीव बर्तन स्टोर पर बैठ कर उससे बातें करने लगे।
बातों-बातों में यह निष्कर्ष निकला कि उनके पुत्र का हिन्दी का प्रश्नपत्र अच्छा
नही गया था। इसलिए वो उसके नम्बर बढ़वाने के लिए किन्ही वाचस्पति प्रोफेसर के
यहाँ आये हैं।
वैद्य जी ने छूटते ही कहा- "प्रोफेसर
वाचस्पति तो मेरे बड़े अच्छे मित्र हैं। लेकिन वो एक नम्बर बढ़ाने के एक सौ
रुपये लेते हैं। आपको जितने नम्बर बढ़वाने हों हिसाब लगा कर उतने रुपये दे
दीजिए।"
बर्तन वाला राजीव यह सब सुन रहा था। उसकी
दूकान के ऊपर ही वाचस्पति जी का निवास था और वह उनका परम भक्त था।
राजीव चुपके से अपनी दूकान से उठा और पीछे
वाले रास्ते से आकर वाचस्पति जी से जाकर बोला- ‘‘सर जी! आप भी 100
रु0 नम्बर के हिसाब से ही परीक्षा में नम्बर बढ़ा
देते हैं क्या?’’
और उसने अपनी
दुकान पर हुई पूरी घटना बता दी।
वाचस्पति जी ने राजीव से कहा- "जब वैद्य
जी! चाँदपुर से आये व्यक्ति का पीछा छोढ़ दें, तो उस व्यक्ति को मेरे पास बुला लाना।"
इधर वैद्य जी ने 10 अंक बढ़वाने के लिए चाँदपुर वाले व्यक्ति से
एक हजार रुपये ऐंठ लिए थे।
बाबा नागार्जुन भी राजीव और वाचस्पति जी की
बातें ध्यान से सुन रहे थे।
थोड़ी ही देर में वैद्य जी वाचस्पति जी के घर
आ धमके। इसी की आशा हम लोग कर रहे थे। पहले तो औपचारिकता की बातें होती रहीं।
फिर वैद्य जी असली मुद्दे पर आ गये और कहने लगे कि मेरे छोटे भाई चाँदपुर में
रहते हैं। सुना है कि आपके पास चाँदपुर के कालेज की हिन्दी की कापियाँ जाँचने के
लिए आयीं है। आप प्लीज मेरे भतीजे के 10 नम्बर बढ़ा दीजिए।
वाचस्पति जी ने कहा- ‘‘वैद्य जी मैं यह व्यापार नही करता हूँ।’’
तब तक राजीव चाँदपुर वाले व्यक्ति को भी लेकर
आ गया।
हम लोग तो वैद्य जी से कुछ बोले नही। परन्तु बाबा नागार्जुन ने वैद्य जी की क्लास
लेनी शुरू कर दी। सभ्यता के दायरे में जो कुछ भी कहा जा सकता था बाबा ने
खरी-खोटी के रूप में वो सब कुछ वैद्य जी को सुनाया।
अब बाबा ने चाँदपुर वाले व्यक्ति से पूछा- ‘‘आपसे इस दुष्ट ने कुछ लिया तो नही है।’’
तब 1000 रुपये वाली बात सामने आयी।
बाबा ने जब तक उस व्यक्ति के 1000 रुपये वैद्य
जी से वापिस नही करवा दिये तब तक वैद्य जी का पीछा नही छोड़ा।
बाबा ने उनसे कहा- ‘‘वैद्य जी अब तो यह आभास हो रहा है कि तुम जो
कविताएँ सुनाते हो वह भी कहीं से पार की हुईं ही होंगी। साथ ही वैद्य जी को
हिदायत देते हुए कहा-
"अच्छा साहित्यकार बनने से पहले
अच्छा व्यक्ति
बनना बहुत जरूरी है।"
कुछ अपनी कहना और कुछ उनकी सुनना!
बाबा के पास लोगों के मिलने का ताँता लगा रहता था!
सारा परिवार बाबा के साथ बहुत खुश रहता था!
मेरे पिता जी श्री घासीराम आर्य
और दोनों पुत्रों के साथ बाबा घूम भी लेते थे!
बच्चों से तो बाबा बहुत घुल-मिल जाते थे!
इस दौरान कई कवि गोष्ठिया भी
बाबा के् सम्मान में आयोजित की गईं!
बाबा को शॉल और मालाओं से
सम्मानित भी तो किया गया था!
मुझे आज भी याद है कि खटीमा बस स्टेशन पर
मैं ही बाबा को दिल्ली की बस में बैठाने आया था!
यह है बाबा का पत्र मेरे नाम
जो उन्होंने दिल्ली से मुझे लिखा था!
|
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शुक्रवार, 3 जनवरी 2020
संस्मरण "बाबा नागार्जुन और चालबाज कवि" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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वाह अद्भुत, कितनी अमूल्य स्मृतियाँ है सर।
जवाब देंहटाएंआप भाग्यवान हैं जो ऐसी महान विभूति का सानिध्य प्राप्त हुआ है।
बहुत सुंदर सीख लिखी है शिक्षाप्रद संस्मरण के साथ।
आभार।
सादर।
बेहतरीन और अनमोल धरोहर के रूप में सहेज कर रखी सामग्री संस्मरण के साथ साझा करने के लिए सादर आभार । सरलता और सादगी प्रतिमूर्ति बाबा नागार्जुन के बारे में पढ़ना सुखद अनुभव है ।
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(०५- ०१-२०२० ) को "माँ बिन मायका"(चर्चा अंक-३५७१) पर भी चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
**
अनीता सैनी
ये संस्मरण थाती हैं शास्त्री जी , बहुत खूब
जवाब देंहटाएंअदभुत संस्मरण
जवाब देंहटाएंसुंदर चित्र
सादर
एक बेजोड़ संस्मरण , अद्भुत अविस्मरणीय, बाबा नागार्जुन का सानिध्य आपको प्राप्त हुआ है, और,इतनी दफा ये सचमुच जीवन का सुंदर सौभाग्य है,सदा धरोवर जैसी ये यादें हमसब तक पहुंचाने के लिए बहुत बहुत आभार आदरणीय।
जवाब देंहटाएंअद्भुत संस्मरण। बाबा नागार्जुन की हर बात निराली थी। इतने निस्पृह और बेवाक लेखन वाले कवि इस दौर में दुर्लभ हैं। आपको उस संस्मरण के हार्दिक साधुवाद!
जवाब देंहटाएं