उदात्त भावनाओं की अभिव्यक्तियाँ
“अरी कलम! तू कुछ तो लिख”
रश्मि अग्रवाल का नाम साहित्यजगत
में अनजाना नहीं है। हाल ही में इनका कविता संग्रह “अरी कलम! तू कुछ
तो लिख” प्रकाशित हुआ है। आप न केवल एक
कवियित्री हैं अपितु एक सफल गद्य लेखिका भी हैं और सुन्दर हस्तलेख में आपके लेख सोशल साइटों पर भी सार्थक होते हैं।
एक
सौ आठ पृष्ठ के काव्य संग्रह “अरी कलम! तू कुछ तो लिख” में 74 कविताएँ हैं। जिसका
मूल्य 150 रुपये मात्र है। जिसे “परिलेख प्रकाशन” नजीबाबाद से प्रकाशित किया है।
मेरे पास समीक्षा की कतार में बहुत सारी कृतियाँ लम्बित है। अतः मन में विचार आया
कि यदि यह किताब भी अपनी बुक सैल्फ में रख दी तो पता नहीं कब तक इसका नम्बर
आयेगा? अतः मैंने जैसे ही “अरी कलम! तू कुछ तो लिख” को पढ़ा तो मेरी
अंगुलियाँ कम्प्यूटर के की-बोर्ड पर कुछ शब्द उगलने लगीं।
साहित्य की दो विधाएँ हैं गद्य और पद्य। जो साहित्यकार की देन होती हैं। वह समाज को दिशा प्रदान करती हैं, जीने का
मकसद बताती हैं। साहित्यकारों ने अपने साहित्य के माध्यम से समाज को कुछ न
कुछ प्रेरणा देने का प्रयास किया है। “अरी कलम! तू कुछ तो लिख” भी एक ऐसा ही प्रयोग है। जो श्रीमती
रश्मि अग्रवाल की कलम से निकला है। काव्य संग्रह का शीर्षक ऐसा है जो
पाठकों को इसे पढ़ने पर विवश कर देता है।
लेखिका ने अपने आत्मकथ्य में सन्देश देते
हुए लिखा है-
“काव्य, जिसको परिभाषित करना अत्यन्त कठिन होता है। काव्य में बहुत सी
विधाएँ होती हैं, इसलिए इसे कुछ शब्दों या वाक्यों में परिभाषित नहीं किया जा
सकता.......।
मैं तो ये भी मानने के लिए
तैयार हूँ कि किसी भी रचना को रचते समय, ईश्वर से प्रार्थना कर ली जाये और स्वयं
का सर्वस्व समर्पित करते हुए, उन भावों को प्रकट किया जाये तो उनका गहुण-धर्म भी
बदला जा सकता है, क्योंकि उन निर्मल भावों के स्थिर प्रकाश में जो भी दृश्य
अवतरित होंगे, उससे ही शब्द प्रकट होंगे और धीरे-धीरे ऐसी स्थिति होगी कि एक ही
झलक में अन्तःश्रवण द्वारा रचना का प्रारम्भ हो जायेगा।“
मैं लेखिका के कथ्य को और अधिक स्पष्ट करते
हुए यह कहूँगा कि समस्त चराचर जगत को जीवन के अध्यायों (बचपन-यौवन और
वृद्धावस्था) से रूबरू होना पड़ता है। “अरी कलम!
तू कुछ तो लिख” काव्यसंग्रह में
लेखिका ने अपनी चौहत्तर कविताओं के माध्यम से जनजीवन की दिनचर्चा से जुड़ी घटनाओं
की उदात्त भावनाओं को अपने शब्द दिये हैं। “जीवन” शीर्षक से इस संकलन की यह
कविता कवयित्री की कलम की शक्ति को प्रमाणित करती है-
“जीवन जिसने पाया!
उसने...
मृत्यु को भी पाया है।
इस सत्यता को,
किसने झुठलाया है?
.............
बालक?
निश्चय ही कल युवा होगा,
और युवा?
युवा निश्चय ही
कल प्रौढ़ होगा।
..............
इसलिए
असम्भव को चाहो मत
और सम्भव को गँवाओ मत।।”
“अरी कलम! तू कुछ तो लिख” का
शुभारम्भ कवियित्री ने “नववर्ष” कविता से किया है-
“विगत वर्ष के आँचल से,
अनेक उपलब्धियाँ समेटे,
नया वर्ष...
देशवासियों के दामन में,
नयी उमंगें/आशाएँ/विश्वास जगायेगा,
और बीते कल से,
आने वाले कल के,
अन्तर का एहसास करायेगा....”
संकलन की दूसरी रचना को कवयित्री ने शीर्षक
कविता के रूप में प्रस्तुत किया है-
“अरी कलम!
तू... कुछ तो लिख
लिखने का मन करता मेरा
इसमें क्या जाता है तेरा?
चारों ओर दिखाई देती,
मुझको घोर तबाही,
विषय सामने, है कागज भी,
और सामने, स्याही भी,
ऐसे में चुप रहना मेरी,
और नहीं लिख पाना तेरी,
कायरता है....”
वर्तमान की ज्वलन्त समस्या को “कन्या
भ्रूण सन्देश” नामक कविता में कवयित्री ने अपने शब्द निम्न प्रकार से दिये
हैं-
“....अन्तिम सन्देश मेरा ये माँ!
हर माँ तक तुम पहुँचा देना
‘रश्मि’ कहती बिटिया
को,
सजा मौत की मत देना”
इस संकलन की एक अन्य कविता “कैसी होती माँ” में कोमलकान्त
पदावली का प्रयोग करते हुए ‘रश्मि अग्रवाल’ ने लिखा है-
“...माँ क्या चीज है?
ये पूछो उन बच्चों से,
जिनकी माँ नहीं होती,
या
जिनकी माँ ही नहीं होती”
जिन्दगी को परिभाषित करते हुए कवयित्री
बता रही हैं कि “जिन्दगी” क्या है-
“लाचारी है,
बेकरारी है,
मक्कारी है,
ग़मख्वारी है,
दरबारी है,
तरफदारी है,
अच्छा चल, तू ही बता,
किस-किस पर वारी है,
जिन्दगी?...”
में एक
निम्न वर्ग के लोगों की जिन्दगी की मार्मिक कहानी है। जो सीधे मन पर असर करती
है।
पर्यावरण
के प्रति अपनी अभिव्यक्ति “परी ने ओढ़ा आवरण” में विदूषी कवयित्री ने
अपना चिन्तन कुछ इस प्रकार प्रस्तुत किया है-
“परी...!
परी ने ओढ़ा आवरण
आवरण “पर्यावरण”!
ये कैसा वातावरण?
कैसा आकाश??
धूल-धुआँ चारों ओर,
कैसे लूँ मैं साँस?...”
हमारे आस-पास जो कुछ घट रहा है उसे कवयित्री
“रश्मि अग्रवाल” ने बाखूबी से चित्रित किया है। नयी कविता के सभी पहलुओं
को संग-साथ लेकर काव्य शैली में ढालना एक दुष्कर कार्य होता है मगर विदूषी
लेखिका ने इस कार्य को सम्भव कर दिखाया है। कुल मिलाकर देखा जाये तो इस काव्य
संग्रह की सभी कविताएँ बहुत मार्मिक और पठनीय है। यह श्लाघा नहीं किन्तु हकीकत
है और मैं बस इतना ही कह सकता हूँ कि संकलन की सभी रचनाएँ मील का पत्थर
साबित होंगी।
मुझे आशा ही नहीं अपितु पूरा विश्वास भी
है कि “अरी कलम! तू कुछ तो लिख” की कविताएँ पाठकों के दिल की गहराइयों तक जाकर अपनी जगह बनायेगी और
समीक्षकों की दृष्टि में भी यह उपादेय सिद्ध होगी।
07-01-2020
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
समीक्षक
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
कवि एवं साहित्यकार
टनकपुर-रोड, खटीमा
जिला-ऊधमसिंहनगर (उत्तराखण्ड) 262308
मोबाइल-7906360576
Website.
http://uchcharan.blogspot.com/
E-Mail .
roopchandrashastri@gmail.com
|
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गुरुवार, 9 जनवरी 2020
समीक्षा "अरी कलम! तू कुछ तो लिख” (समीक्षक-डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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