-- भाव अपनी ग़ज़ल में कैसे भरूँ शब्द को अपने गरल कैसे करूँ -- फँस गया अपने बुने ही जाल में रास्ता अपना सरल कैसे करूँ -- तिश्नगी से कण्ठ सूखा जा रहा आचमन देकर तरल कैसे करूँ -- ज़िन्दगी में चाह है, ना राह है चश्म को अपनी सजल कैसे करूँ -- तन-बदन में पड़ गयीं है झुर्रियाँ “रूप” को अपने नवल कैसे करूँ -- |
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मंगलवार, 13 अक्टूबर 2020
ग़ज़लिका "रूप को अपने नवल कैसे करूँ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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लाजवाब
जवाब देंहटाएंउत्तम अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंAll posts are amazing. You have shared a very informative article, it will help me a lot, I do not expect that we believe you will keep similar posts in future. Thanks a lot for the useful post and keep it up.Hindi info
जवाब देंहटाएंसुन्दर-सुन्दर अशआर
जवाब देंहटाएंवंदन
वाह !बहुत ही सुंदर सर।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन गजल
जवाब देंहटाएंअनुपम भावाभिव्यक्ति.
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