उपवन मुस्कायेगा!! -- कुहासे की चादर, धरा पर बिछी हुई। नभ ने ढाँप ली है, अमल-धवल रुई।। -- दिवस हैं अभी छोटे, रोशनी मऩ्द है। शीत की मार है, विद्यालय बन्द है।। -- जल रहे हैं अलाव, आँगन चौराहों पर। चहल-पहल कम है, पगदण्डी-राहों पर।। -- सूरज अदृश्य है, पड़ रहा पाला है।। पर्वत ने ओढ़ लिया, बर्फ का दुशाला है।। -- मन में एक आशा है, अब बसन्त आयेगा! खिल जायेंगे नव सुमन, उपवन मुस्कायेगा!! -- |
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रविवार, 31 जनवरी 2021
कविता "अब बसन्त आयेगा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएं"मन में एक आशा है,
जवाब देंहटाएंअब बसन्त आयेगा!"
.
बहुत अच्छी अभिलाषा सर!
मन में एक आशा है,
जवाब देंहटाएंअब बसन्त आयेगा!
खिल जायेंगे नव सुमन,
उपवन मुस्कायेगा!!
आमीन !!!!!
सुंदर, आशावादी गीत...
आदरणीय अनंत शुभकामनाओं सहित
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
खिल जायेंगे नव सुमन, उपवन मुस्कायेगा; वह समय भी आएगा
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 01 फ़रवरी 2021 को 'अब बसन्त आएगा' (चर्चा अंक 3964) पर भी होगी।--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
बहुत सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंवाह!
हटाएंसुंदर,भावपूर्ण,उत्कृष्ट रचना माननीय।
सादर नमन।
शीतांत में आहट सुनाई देने लगती है - दूर नहीं है अब वसंत.
जवाब देंहटाएंवाह!बहुत ही सुंदर सर।
जवाब देंहटाएंसादर
वाह! बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंपर्वतों के दुशाले अब पिघलने लगे हैं,कोहरे भी तो छंटने लगे हैं
सच अब बसंत आयेगा।
अप्रतिम रचना।
मुग्ध करती रचना।
जवाब देंहटाएंसूरज अदृश्य है,
जवाब देंहटाएंपड़ रहा पाला है।।
पर्वत ने ओढ़ लिया,
बर्फ का दुशाला है।।
वाह! अत्यंत सुंदर उपमाएं...
सादर नमन आदरणीय 🙏🌹🙏
- डॉ शरद सिंह