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शनिवार, 31 अगस्त 2013
"बी.एस.एन.एल का इंटरनेट फेल" (डॉ. रूपचंद्र शास्त्री 'मयंक')
गुरुवार, 29 अगस्त 2013
"इल्म रहता पायदानों में" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
छलक जाते हैं अब आँसू, ग़ज़ल को गुनगुनाने में।
नही है चैन और आराम, इस जालिम जमाने में।।
नदी-तालाब खुद प्यासे, चमन में घुट रही साँसें,
प्रभू के नाम पर योगी, लगे खाने-कमाने में।
हुए बेडौल तन, चादर सिमट कर हो गई छोटी,
शजर मशगूल हैं अपने फलों को आज खाने में।
दरकते जा रहे अब तो, हमारी नींव के पत्थर,
चिरागों ने लगाई आग, खुद ही आशियाने में।
लगे हैं पुण्य पर पहरे, दया के बन्द दरवाजे,
दुआएँ कैद हैं अब तो, गुनाहों की दुकानों में।
जिधर देखो उधर ही “रूप” का, सामान बिकता है,
रईसों के यहाँ अब, इल्म रहता पायदानों में।
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बुधवार, 28 अगस्त 2013
“आ जाओ अब कृष्ण-कन्हैया” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
क्यों है अँधियारा उपवन में?
सूरज क्यों दिन में
शर्माया?
भरी दुपहरी में क्यों छाया?
चन्दा गुम क्यों बिना अमावस?
नजर नही आती क्यों पावस?
क्यों है धरती रूखी-रूखी?
क्यों है खेती सूखी-सूखी?
छागल क्यों हो गई विदेशी?
पागल क्यों है आज स्वदेशी?
कहाँ गयी माता की बिन्दी?
सिसक रही क्यों अपनी हिन्दी?
प्यारी भाषा बहक रही क्यों?
अंग्रेजी ही चहक रही क्यों?
कहने भर की आजादी है!
आज वतन की बर्बादी है!!
नजर न आता कहीं अमन है!
दागदार हो गया चमन है!!
कहाँ हो गई चूक भयंकर?
विष उडेलते हैं क्यों शंकर?
रक्षक जब उत्पात मचाये!
विपदाओं से कौन बचाये?
आस लगाये यशोदा मइया!
आ जाओ अब कृष्ण-कन्हैया!!
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मंगलवार, 27 अगस्त 2013
"रासरचैया कहकर मत बदनाम करो" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
योगिराज का
सारे जग में, इतना मत अपमान करो।
कृष्णचन्द्र को
रासरचैया, कहकर मत बदनाम करो।।
कर्म
प्रधान बताया जिसने, गीता का शुभज्ञान दिया,
भाई-बहन के पावन
सम्बन्धों का जिसने मान किया,
मानवता के उस पालक का, जी भरकर गुणगान करो।
जिसने जीवनभर दुष्टों का, इस धरती पर हनन किया,
कर्तव्यों का बोध करा कर, मन में चिन्तन-मनन दिया,
मात-पिता, आचार्य-बुजुर्गों का, जीवन भर मान करो।
प्रहरी बनकर मातृभूमि की, रक्षा में सब सजग रहें,
अन्यायी-अत्याचारी की, बर्बरता को नहीं सहें,
जीव-आत्मा अजर-अमर है, मन में इतना ध्यान करो।
जिसने गौओं की सेवा कर, गोपालक पद पाया है,
शाकाहारी बनने का, गुरुमन्त्र हमें बतलाया है,
माखन-दुग्ध-दही को खाकर, तन-मन को बलवान करो।
योगिराज का सारे जग में इतना मत अपमान करो।
कृष्णचन्द्र को रासरचैया कहकर मत बदनाम करो।।
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सोमवार, 26 अगस्त 2013
"भारत माँ आजाद हो गयी...!" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
अंग्रेजों के चंगुल से तो,
भारत माँ आजाद हो गयी!
लेकिन काले अंग्रेजों के,
जुल्मों से नाशाद हो गयी।।
आज वाटिका के माली के,
कपड़े उजले, दिल हैं काले,
मसल रहे भोले सुमनों को,
बनकर ये हाथी मतवाले,
आजादी की उत्कण्ठा अब,
कुण्ठा-पश्चाताप हो गयी।
भारत माँ आजाद हो गयी!!
तोड़ गुलामी की जंजीरे,
लालकिले पर ध्वज फहराया,
सोन चिरैया के हिस्से में,
संविधान परदेशी आया,
वीर सपूतों की कुर्बानी,
लगता है बरबाद हो गयी।
भारत माँ आजाद हो गयी!!
स्वप्न संजोए थे सिन्दूरी,
सब के सब रह गये अधूरे,
अब तो आशाएँ धूमिल हैं,
सपने कभी न होंगे पूरे,
जन-गण-मन गाते-गाते अब,
आजादी अभिशाप हो गयी।
भारत माँ आजाद हो गयी!!
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रविवार, 25 अगस्त 2013
"खरगोश" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
रूई जैसा कोमल-कोमल,
लगता कितना प्यारा है।
बड़े-बड़े कानों वाला,
सुन्दर खरगोश हमारा है।।
बहुत प्यार से मैं इसको,
गोदी में बैठाता हूँ।
बागीचे की हरी घास,
मैं इसको रोज खिलाता हूँ।।
मस्ती में भरकर यह
लम्बी-लम्बी दौड़ लगाता है।
उछल-कूद करता-करता,
जब थोड़ा सा थक जाता है।।
तब यह उपवन की झाड़ी में,
छिप कर कुछ सुस्ताता है।
ताज़ादम हो करके ही,
मेरे आँगन में आता है।।
नित्य-नियम से सुबह-सवेरे,
यह घूमने जाता है।
जल्दी उठने की यह प्राणी,
सीख हमें दे जाता है।।
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शनिवार, 24 अगस्त 2013
"फोटोफीचर कुमुद" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
शुक्रवार, 23 अगस्त 2013
"चले थामने लहरों को" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
चौकीदारी मिली खेत
की, अन्धे-गूँगे-बहरों को।
चोटी पर बैठे मचान
की, लगा रहे हैं पहरों को।।
घात लगाकर मित्र-पड़ोसी,
धरा हमारी लील रहे,
पर बापू के मौन-मनस्वी, देते उनको ढील रहे,
बोल न पाये, ना सुन
पाये, ना पढ़ पाये चेहरों को।।
चोटी पर बैठे मचान
की, लगा रहे हैं पहरों को।।
कैसे भरे तिजोरी
अपनी, दिवस-रैन ये सोच रहे,
अपने पैने नाखूनों
से, सुमनों को ये नोच रहे,
गाँवों को वीरान
बनाकर, रौशन करते शहरों को।
चोटी पर बैठे मचान
की, लगा रहे हैं पहरों को।।
चीर पर्वतों की
छाती को, बहती चंचल धारा है,
गहरी नदिया दूर
किनारा, कोई नहीं सहारा है,
चप्पू लेकर दूर
खड़े ये, चले थामने लहरों को।
चोटी पर बैठे मचान
की, लगा रहे हैं पहरों को।।
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गुरुवार, 22 अगस्त 2013
"बच्चे बचपन याद दिलाते" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
सीधा-सादा, भोला-भाला।
बचपन होता बहुत निराला।।
बच्चे सच्चे और सलोने।
बच्चे होते स्वयं खिलौने।।
पल में रूठें, पल में मानें।
बच्चे बैर कभी ना ठानें।।
किलकारी से घर गुंजाते।
धमा-चौकड़ी खूब मचाते।।
टी.वी. से मन को बहलाते।
कार्टून इनके मन भाते।।
पापा जब थककर घर आते।
बच्चे खुशियों को दे जाते।।
तुतली भाषा में बतियाते।
बच्चे बचपन याद दिलाते।।
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"तेरा उच्चारण थम जाये" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मंगलवार, 20 अगस्त 2013
"भावनाओं की हैं ये लड़ी राखियाँ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
जूट की सूत की चाहे रेशम की हों,
प्यार की डोर हैं हथकड़ी राखियाँ।
कच्चा धागा इन्हें मत समझना कभी,
भावनाओं की हैं ये लड़ी राखियाँ।
माँ की गोदी में पलकर बड़े हो
गये,
एक आँगन में चलकर खड़े हो गये.
धान की पौध सी हैं बहन-बेटियाँ
भेजतीं साल में भाइयों के लिए,
नेह के हैं नगीने जड़ी राखियाँ।।
मायके से भले दूरियाँ हों गयीं,
किन्तु दिल में सभी के लिए प्यार
है,
प्रीत की डोरियों में रचा और
बसा,
भाइयों के लिए स्नेह-उपहार है,
कितने अरमान से भेजती हर बरस,
झिलमिलाती सी छोटी-बड़ी
राखियाँ।।
ढंग चाहे हो कोई, कोई रंग हो
कम न होगा कभी राखियों का चलन,
भाई रक्षा में तत्पर रहेंगे सदा,
धन से होता नहीं प्यार का आकलन,
मायका-सास का घर सलामत रहे,
दो कुलों की सबल हैं कड़ी
राखियाँ।।
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