सीधा-सादा, भोला-भाला।
बचपन होता बहुत निराला।।
बच्चे सच्चे और सलोने।
बच्चे होते स्वयं खिलौने।।
पल में रूठें, पल में मानें।
बच्चे बैर कभी ना ठानें।।
किलकारी से घर गुंजाते।
धमा-चौकड़ी खूब मचाते।।
टी.वी. से मन को बहलाते।
कार्टून इनके मन भाते।।
पापा जब थककर घर आते।
बच्चे खुशियों को दे जाते।।
तुतली भाषा में बतियाते।
बच्चे बचपन याद दिलाते।।
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गुरुवार, 22 अगस्त 2013
"बच्चे बचपन याद दिलाते" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सच कहा आपने, बच्चे हमें हमारे बचपन में खींच ले जाते हैं।
जवाब देंहटाएंआपकी यह सुन्दर रचना दिनांक 23.08.2013 को http://blogprasaran.blogspot.in/ पर लिंक की गयी है। कृपया इसे देखें और अपने सुझाव दें।
जवाब देंहटाएंबच्चे सदैव हमें हमारे बचपन की याद दिलाते हैं...बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंक्या खूब बात कही. बच्चे अपना ही प्रतिबिम्ब होते हैं..
जवाब देंहटाएंआज की बुलेटिन जन्म दिवस : हरिशंकर परसाई …. ब्लॉग बुलेटिन में आपकी पोस्ट (रचना) को भी शामिल किया गया। सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंआज की बुलेटिन जन्म दिवस : हरिशंकर परसाई …. ब्लॉग बुलेटिन में आपकी पोस्ट (रचना) को भी शामिल किया गया। सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंबच्चों के साथ रहने से ही बचपन लौट आता है, उम्र का कोई भी बंधन इस स्थिति को स्वीकार्य नही होता, सुंदर विचार.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना। बधाई। कभी यहाँ भी पधारें।
जवाब देंहटाएंसादर मदन
http://saxenamadanmohan1969.blogspot.in/
http://saxenamadanmohan.blogspot.in/
खूबसूरत बचपन ...बहुत खूब
जवाब देंहटाएंbahut khub
जवाब देंहटाएं